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रही थी । चमार द्वारा जाँच करने पर पता चला कि श्री महावीरजी तीर्थ
गाय निकट के एक टीले पर जाकर खड़ी होती है वहीं
सारा दूध झर जाता है । चमार ने गाय को वहाँ जाने तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, ताम्र वर्ण, से रोकना चाहा लेकिन गाय नहीं रुक रही थी । चमार पद्मासनस्थ ।
के दिल में अनेकों प्रकार की शंकाएँ होने लगीं। कुछ तीर्थ स्थल श्री महावीरजी (चान्दनपुर) गाँव के
पता नहीं लग सका । आखिर टीले को खोदना शुरु गंभीर नदी के तट पर ।
किया, खोदते-खोदते प्रभु-प्रतिमा दृष्टिगोचर हुई । प्राचीनता * यह प्रतिमा सत्रहवीं से उन्नीसवीं
___ चमार ने भाव भक्ती के साथ सावधानी पूर्वक प्रकट हुई शताब्दी के बीच काल में इस मन्दिर के निकट एक
प्रतिमा को बाहर विराजमान किया । भाग्यवान चमार टीले पर भूगर्भ से प्राप्त हुई मानी जाती है । प्रतिमाजी
अपने को कृतार्थ समझने लगा । भगवान की प्रतिमा अति ही प्राचीन, शान्त, सुन्दर व प्रभावशाली है ।
प्रकट हुई का वृत्तान्त चारों तरफ फैलने लगा व दूर-दूर
से भक्त जनों की भीड़ उमड़ पड़ी । दर्शन मात्र से प्रतिमा-भूगर्भ से प्रकट होने पर भव्य मन्दिर का
भक्तजनों की मनोकामनाएं पूर्ण होती रहीं, जिससे निर्माण हुआ व प्रतिष्ठित की गयी ।
दिन-प्रतिदिन भक्तजनों का आवागमन बढ़ने लगा । विशिष्टता भगवान श्री महावीर की यह
भव्य मन्दिर का निर्माण करवाकर प्रतिमाजी को प्राचीन प्रतिमा चमत्कारी घटनाओं के साथ प्रकट हुई।
प्रतिष्ठित किया गया । अभी भी हमेशा यात्रियों का थी । कहा जाता है एक चमार की गाय दूध नहीं दे
आवागमन रहता है । भक्तजनों के कथनानुसार यहाँ
श्री वीरप्रभु जिनालय-महावीरजी
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