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श्री हंडाउद्रा तीर्थ
वहाँ भूतल से प्रकटित आदिनाथ प्रभु की श्याम वर्ण अतीव भव्य व प्राचीन प्रतिमा है जो अभी भी वहाँ
विराजमान है । तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण, प्रायः पर्वत पर गांव बसने के पूर्व उसकी तलहटी पद्मासनस्थ, लगभग 35 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । में गांव अवश्य रहता है या बसता है परन्तु यह गांव
तीर्थ स्थल आबू पर्वत की प्राचीन तलहटी कब व किसने बसाया उसका उल्लेख नहीं है । लेकिन अणादरा गाँव में ।
यहाँ भी हजारों वर्ष पूर्व भूभीगत हुवे मन्दिर व प्राचीनता आज का अणादरा गांव प्राचीनकाल प्रातमाआ क कलात्मक भग्नावशष अ
प्रतिमाओं के कलात्मक भग्नावशेष अभी भी जगह-जगह में हन्डाउद्रा, हणादरा आदि नामों से विख्यात था ।
निकलते आ रहे हैं जो यहाँ की प्राचीनता व भव्यता अरावली पर्वत की एक मुख्य चोटी, जो सदियों से को सिद्ध करते हैं । इससे यह भी प्रतीत होता है कि अर्बुदाचल के नाम से विख्यात है व सहस्रों वर्ष पूर्व किसी समय यह एक विराट नगर होगा व अनेकों से ऋिषि मुनियों की तपोभूमी रही है, उसकी तलहटी मन्दिर रहे होंगे । का यह गांव था । इसी रास्ते पर्वत पर आना-जाना
आज यहाँ यही एक मन्दिर है जिसके निर्माता व होता था ।
निर्माण काल का पता नहीं परन्तु प्रभु प्रतिमा अतीत अर्बुदाचल पर विश्व विख्यात देलवाड़ा जैन मन्दिरों
सौम्य व सम्प्रतिकालीन है । के निर्माण पूर्व भी वहाँ जैन मन्दिरों के रहने का प्रमाण
इस मन्दिर का अन्तीम जीर्णोद्धार लगभग तीन वर्ष पूर्व होने का उल्लेख है । प्रतिमाएँ वही प्राचीन है।
विशिष्टता 8 यहाँ की प्राचीनता ही इस तीर्थ की मुख्य विशेषता है ।
अर्बुदाचल पर्वत पर जाने हेतु यही रास्ता था अतः पहाड़ पर चढ़ते व उतरते वक्त यहीं ठहरना पड़ता था। राजा-महाराजाओं ने भी अपनी-अपनी कोठियाँ यहाँ बना रखी थी । आबू पर्वत की प्राचीन मुख्य तलहटी रहने के कारण भी यहाँ की विशेषता है ।
यह मन्दिर व प्रतिमा भी सम्प्रति कालीन मानी जाती है । मूर्ति पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है । ___ योगीराज विजय श्री शांतीसूरीश्वरजी आचार्य भगवंत जो आबू के योगीराज के नाम आज भी विख्यात है, इसी रास्ते से अचलगढ़-देलवाड़ा जाया-आया करते थे। यहाँ पर कई वर्षों तप-जप करते रहे, वह स्थान आज भी विद्यमान है । _ वि. सं. 1996 माघ शुक्ला पंचमी को उनका स्वर्ण जयन्ति समारोह अतीव धूमधाम से मनाया गया था। उस अवसर पर पण्डित किंकरदास ने भजनों की पुस्तक समर्पित की थी जो आज भी भक्तों द्वारा उपयोग में ली जा रही है ।
कई वर्षों से यहाँ से पर्वत पर जाने का रास्ता
सुगमता पूर्वक नहीं रहा था । अब फिर से ठीक कर श्री आदीश्वर जिनालय-हंडाऊद्रा
दिया गया है लेकिन अभी तक कार व बस जा सके 422