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श्री पिन्डवाड़ा तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल पिन्डवाडा गाँव के मन्दिर मोहल्ले में ।
प्राचीनता इसका प्राचीन नाम पिन्डरवाटक रहने का उल्लेख मिलता है । विश्वविख्यात राणकपुर मन्दिर के निर्माता श्री धरणाशाह के पिता धनाढ्य श्रेष्ठी श्री कुंवरपाल व मंत्रीश्वर लीबा द्वारा वि. सं. 1465 फाल्गुन शुक्ला प्रतिपदा को इस मन्दिर का उद्धार करवाने का उल्लेख इस मन्दिर में नवचौकी के दीवार पर अंकित है। वि. सं. 1469 माघ शुक्ला 6 के शुभ दिन श्रेष्ठी श्री कुंवरपाल के पुत्र श्री रत्नाशाह व धरणाशाह द्वारा इस मन्दिर में एक प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाने व अधूरा कार्य पूर्ण करवाने का उल्लेख है। इसी मन्दिर में एक प्रतिमा पर वि. सं. 1229 का लेख उत्कीर्ण है । प्रतीत होता है कि यह तीर्थ विक्रम की बारहवीं सदी से पूर्व का है । यहाँ के अन्तिम
जीर्णोद्धार के समय प्रतिष्ठा आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी की पावन निश्रा में हुवे का उल्लेख है ।
विशिष्टता वसन्तगढ़ ध्वंस होने पर वहाँ से लायी गयी प्राचीन गुप्तकालीन अद्वितीय कलात्मक धातु प्रतिमाओं के दर्शन का लाभ यहीं पर मिल सकता है। ये प्रतिमाएँ सातवीं, आठवीं सदी की है । गुढ़ मण्डप में कायोत्सर्ग मुद्रा में दो भव्य धातु प्रतिमाएँ हैं, जिनमें एक पर वि. सं. 744 का लेख उत्कीर्ण है । प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ला 6 को ध्वजा चढ़ती है।
अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त यहाँ चार और मन्दिर हैं ।
कला और सौन्दर्य मन्दिर निर्माण का कार्य तो अति ही सुन्दर ढंग से किया हुआ है ही, साथ ही इस मन्दिर में गुप्तकालीन प्राचीन प्रभु प्रतिमाओं की कला का बेजोड़ नमूना है । भाँति-भाँति की कलापूर्ण प्राचीन धातु प्रतिमाएँ अति ही दर्शनीय हैं । ऐसी प्रतिमाओं के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ हैं । इन प्रतिमाओं का जितना वर्णन करें कम है । भक्तजन यहाँ के दर्शन का मौका न चूकें ।
श्री महावीर जिनालय-पिण्डवाड़ा
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