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श्री दियाणा तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 90 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) |
तीर्थ स्थल सरूपगंज से 17 कि. मी. दूर घने जंगल में पहाड़ियों के बीच ।
प्राचीनता यह तीर्थ स्थल चरम तीर्थंकर भगवान महावीर के समय का माना जाता है । जैसे
आज भयानक जंगल में सुरम्य पहाड़ियों के बीच सिर्फ यह मन्दिर है, जो प्राचीनता की याद दिलाता है। यहाँ प्राचीन पटों व बावड़ियों पर तेरहवीं व चौदहवीं सदी के लेख उत्कीर्ण हैं । वि. सं. 1436 पौष शुक्ला 6 गुरुवार को यहाँ श्री पार्श्वनाथ चरित्र की रचना होने का उल्लेख मिलता है ।
विशिष्टता यह तीर्थ स्थल प्रभु वीर के समय का माना जाने के कारण यहाँ की महान विशेषता है। का माना जान क कारण यहा का महान वि यह तीर्थ भी छोटी मारवाड़ की पंचतीर्थी का एक स्थान है । इस ढंग के इतने प्राचीन, एकान्त जंगल में, शान्त व शुद्ध वातावरण से युक्त तीर्थ स्थान अल्प ही है । प्रतिवर्ष जेठ शुक्ला 2 को ध्वजा चढ़ाई जाती है।
अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त यहाँ कोई मन्दिर नहीं है ।
कला और सौन्दर्य यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य का जितना भी वर्णन करें, कम है । तीनों तरफ पहाड़ों के बीच भयानक जंगल में सायं व रात का वातावरण मन को प्रफुल्लित करता है । लगता है जैसे किसी दिव्य लोक में आ गये हैं । रात में जंगली जानवरों
जीवित स्वामी वान्दिया । यह प्रतिमा प्रभ वीर के समय की मानी जाती है । कहा जाता है कि भगवान महावीर इधर विचरे तब काउसग्ग ध्यान में यहाँ रहे थे व उनके भ्राता नन्दीवर्धन ने यहाँ बावनजिनालय भव्य मन्दिर का निर्माण करवाकर यह प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई थी । प्रभु प्रतिमा की कला से ही इसकी प्राचीनता सिद्ध हो जाती है । निःसन्देह इस तीर्थ का अनेकों बार जीर्णोद्धार हुआ होगा एवं किसी समय यह एक विराट नगरी रही होगी ।
श्री महावीर जिनालय का दूर दृश्य-दियाणा
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