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________________ यह प्रतिमा प्रभूवीर के समय की है, इसकी एक हैं । लगता है जैसे वीर प्रभु साक्षात् विराजमान हैं । कहावत भी अति प्रचलित है, नाणा दियाणा नान्दिया इस बावनजिनालय मन्दिर की सारी प्रतिमाओं की जीवित श्वामी वान्दिया । इस मन्दिर में स्तम्भों आदि कला का भी जितना वर्णन करें, कम है । साथ ही पर उत्कीर्ण वि. सं. 1130 से 1210 तक के यहाँ का प्राकृतिक दृश्य अति मनलुभावना है । दूर से शिलालेखों से भी इसकी प्राचीनता सिद्ध हो जाती है। जंगल में शिखर समूहों का दृश्य दिव्य नगरी सा प्रतीत इसे पहले 'नान्दियक चैत्य' भी कहते थे । वि. सं. होता है । 1130 में नान्दियक चैत्य में बावड़ी खुदवाने का मार्ग दर्शन 8 यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन उल्लेख हैं । वि. सं. 1201 में जीर्णोद्धार हुए का सिरोही रोड 10 कि. मी. है. जहाँ से आब रोड मार्ग उल्लेख मिलता है । समय-समय पर हर तीर्थ का में कोजरा होकर आना पड़ता है । नजदीक का बड़ा उद्धार होता ही है । उसी भाँति इस तीर्थ का भी अनेकों शहर सिरोही 24 कि. मी. दूर है । इन जगहों से बस बार उद्धार हुआ होगा । व टेक्सियों की सुविधा है । नान्दिया तीर्थ से विशिष्टता प्रभु वीर के समय की उनकी बामनवाइजी 6 कि. मी. व लोटाणा तीर्थ 5 कि. मी. प्रतिमाएँ बहुत ही कम जगह है, जिन्हें जीवित स्वामी दूर है । बस स्टेण्ड से मन्दिर 1/27 कि. मी. दूर है । कहते है । उसमें भी ऐसी सुन्दर व मनमोहक प्रतिमा सुविधाएँ 8 ठहरने के लिए गाँव में धर्मशाला है, अन्यत्र नहीं है । श्री नन्दिवर्धन द्वारा बसाये गाँव में जहाँ पर भोजनशाला सहित सारी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। इस प्राचीन मन्दिर को नन्दीश्वर चैत्य भी कहते हैं । टीकापी इस मन्दिर के निकट ही टेकरी पर एक देरी है, जिस पोस्ट : नान्दिया - 307 042. में शिला पर प्रभु के चरण व सर्प की आकृति उत्कीर्ण जिला : सिरोही, प्रान्त : राजस्थान, है । भक्तों के मान्यतानुसार प्रभु वीर ने चण्डकौशिक फोन : 02971-33416 पी.पी. सर्प को यहीं पर प्रतिबोध दिया था । इसी शिला पर कुछ प्राचीन लेख भी उत्कीर्ण हैं, जिनके अन्वेषण की आवश्यकता है । आचार्य भगवंत साहित्य शिरोमणी विजय श्री प्रेमसूरीश्वरजी म.सा. की यह जन्म भूमि है। विश्व विख्यात राणकपुर तीर्थ के निर्माता शेठ श्री धरणाशाह व रत्नशाह भी इसी नगरी के निवासी थे । प्रतीत होता है यह नगर सदियों तक जाहोजलाली पूर्ण रहा । ___ यह प्रभु प्रतिमा अष्ट प्रतिहार्ययुक्त है जिसमें इन्द्र-इन्द्राणी पुष्प वृष्टी करते हैं, देव दुंदुभी बजाते हैं, भावमंडल है, छत्र है, अशोक वृक्ष हैं, धर्मचक्र है, इन्द्र महाराजा भगवान के दोनों तरफ चामरवींझते हैं और मूर्ति के साथ बावन जिनालय का परिकर भी है जिसमें इक्यावन भगवान हैं और बावनवें मूलनायक श्री महावीर प्रभु है । यह यहाँ की मुख्य विशेषता है। ऐसे परिकरयुक्त प्रभु के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ है। __ अन्य मन्दिर 8 वर्तमान में इसके अतिरिक्त गाँव में 2 मन्दिर व एक गुरु मन्दिर हैं । __कला और सौन्दर्य प्रभु वीर के समय की इतनी तेजस्वी कलात्मक प्रतिमा के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ 390
SR No.002331
Book TitleTirth Darshan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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