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________________ विशालसुन्दरजी द्वारा वि. सं. 1685 पं. श्री क्षेमकुशलजी द्वारा वि. सं. 1657 व श्री वीरविजयजी द्वारा वि. सं. 1708 में रचित तीर्थ स्तोत्रों में इस तीर्थ का महिमा गाई है । इस प्राचीन तीर्थ का अनेकों बार जीर्णोद्धार हुआ होगा । वर्तमान में श्री कल्याणजी परमानन्दजी पेढ़ी द्वारा जीर्णोद्धार का कार्य करवाया गया । विशिष्टता कहा जाता है भगवान श्री महावीर के कानों मे कील लगाने का उपसर्ग यहीं हुआ था, जहाँ प्रभु की चरण पादुकाएँ प्रतिष्ठित हैं । आचार्य श्री नागार्जुनसूरिजी, श्री स्कन्दनसूरिजी, श्री पादलिप्तसूरिजी एवं राजा श्री संप्रति यहाँ नियमित रूप से दर्शनार्थ आते थे । सिरोही के श्री शिवसिंहजी महाराज को राजगादी मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी परन्तु इस तीर्थ पर अखिल भारतीय जैन श्वेताम्बर पोरवाल सम्मेलन यहाँ पर योगीराज श्री विजय शान्तिसूरीश्वरजी की निश्रा में सुसम्पन्न हुआ था, जो उल्लेखनीय है । सम्मेलन की पूर्णाहुती के समय चैत्र कृष्णा 3 के शुभ दिन श्री संघ द्वारा योगीराज को कई पदवियों से अलंकृत किया गया था । अभी भी हमेशा सैकड़ों यात्रीगणों का यहाँ आवागमन रहता है । हर मास के शुक्ल पक्ष की ग्यारस को भक्तजनों का विशेष आवागमन रहता है । अन्य मन्दिर इसी पहाड़ी पर सम्मेतशिखर की रचना बहुत सुन्दर ढंग से की गई है जो दर्शनीय है। कहा जाता है भगवान महावीर के कानों में कील मारने का उपसर्ग यहीं हुआ था । जहाँ प्रभु के प्राचीन चरण चिन्ह है, व मन्दिर बना हुआ है । पहाड़ी पर एक कमरा है जहाँ आबू के योगीराज श्री विजयशान्तिसूरीश्वरजी महाराज प्रायः ध्यान किया करते थे, वहाँ उसी पाट पर जहाँ वे बैठते थे उनका फोटो रखा हुआ है, व कमरे में उनकी मूर्ति दर्शनार्थ रखी हुई है । कला और सौन्दर्य मन्दिर में श्री महावीर भगवान के 27 भवों के पट्ट संगमरमर में बनाये गये हैं वे अति ही सुन्दर व दर्शनीय है ।बालू की बनी प्रभु प्रतिमा अत्यन्त सुन्दर व प्रभावशाली है । सहज ही में भक्त का हृदय प्रभु तरफ लयलीन हो जाता है । जंगल में रहने के कारण यहाँ का प्राकृतिक दृश्य भी अति शान्तिप्रद है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन सिरोही रोड़ 7 कि. मी. है, जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधा है । पिन्ड़वाड़ा गाँव 8 कि. मी. है जो कि सिरोही रोड़ स्टेशन के पास ही है । सिरोही गाँव 16 कि. मी. है । आबू से व सिरोही रोड़ से सिरोही गाँव जानेवाली सारी बसें बामनवाड़ होकर ही जाती है । धर्मशाला के सामने ही बस स्टेण्ड है । सुविधाएँ ठहरने के लिए मन्दिर के अहाते में ही विशाल धर्मशाला हैं, जहाँ पानी, बिजली, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की सुविधा हैं । पेढी श्री कल्याणजी परमानन्दजी पेढ़ी, जैन तीर्थ श्री बामनवाड़जी । पोस्ट : वीरवाड़ा - 307 022. तहसील : पिन्डवाड़ा, . जिला : सिरोही, प्रान्त : राजस्थान, फोन : 02971-37270. उपसर्ग स्थल पर प्रभुवीर के प्राचीन चरण चिन्ह-बामनवाड़ा श्रद्धा व भक्ति के कारण वे सिरोही के राजा बने, अतः उन्होंने इस तीर्थ की कायम सुव्यवस्था के लिए आसपास के कुछ अरट, बावड़ियाँ, खेती योग्य भूमि आदि भेंट करके वि. सं. 1876 ज्येष्ठ शुक्ला 5 के दिन ताम्रपत्र लिखकर अर्पण किया । यहाँ अभी भी अनेकों चमत्कारिक घटनाएँ घटती हैं व श्रद्धालु भक्तजनों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं । वि. सं. 1989 में 388
SR No.002331
Book TitleTirth Darshan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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