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________________ श्री सिरोही तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल सिरोही गाँव के देरासर मोहल्ले में। प्राचीनता महाराव शिवभाण के पुत्र सेंसमलजी चौहान ने वि. सं. 1482 में यह गाँव बसाया था । सिरोही गाँव बसने के पूर्व ही व्यापार के लिए यहाँ से होकर जानेवाले एक श्रेष्ठी ने यह स्थान शांत व पवित्र समझकर वि. सं. 1323 आसोज शुक्ला 5 के शुभ दिन श्री आदिनाथ भगवान के इस मन्दिर का निर्माण कार्य प्रारम्भ किया था । निर्माण का कार्य सम्पन्न होने पर वि. सं. 1339 आषाढ़ शुक्ला 13 मंगलवार के दिन प्रतिष्ठापना करवायी गयी, ऐसा उल्लेख मिलता है । इसे अंचलगच्छ का मन्दिर कहते हैं। वि. सं. 1499 में कविवर पं. श्री मेघ गणि द्वारा रचित तीर्थ माला में भी इस मन्दिर का वर्णन है। _ वि. सं. 1424 कार्तिक पूर्णिमा के दिन एक और श्री आदिनाथ भगवान के बावन जिनालय मन्दिर की प्रतिष्ठापना हुई । इनके अलावा भी बाद में अनेकों भव्य मन्दिर बने जो अभी भी विद्यमान हैं । विशिष्टता * जहाँ गाँव ही नहीं बसा हुआ था, उस जंगल में राह चलते भाग्यवान् व्यापारी श्रावक ने अपने अति उत्तम व निर्मल विचारों से भावपूर्वक जिन मन्दिर का निर्माण करवाया । कुछ वर्षों बाद वह स्थान नगरी के रूप में परिवर्तित होकर अभी तक अखण्ड कायम है । यह सब शुद्ध भाव का ही कारण है । जगत्गुरु श्री हीरविजयसूरीश्वरजी को वि. सं. 1610 मार्गशीर्ष शुक्ला 10 के दिन आचार्य पदवी से यहीं पर विभूषित किया गया था । उक्त विराट महोत्सव के शुभ अवसर पर स्वर्ण मूहरों की प्रभावना दी गई थी जो उल्लेखनीय है । वि. सं. 1639 में श्री विजयसेनसूरीश्वरजी ने यहाँ के महाराव को प्रतिबोध देकर प्रभावित किया था । वि. सं. 1634 माघ शुक्ला पंचमी के दिन आचार्य श्री हीरविजयसूरीश्वरजी ने श्री आदिनाथ भगवान के चार मंजिल का चौमुखा विशाल मन्दिर की प्रतिष्ठा करवायी थी, जो आज कला आदि में सबसे विशिष्ट माना जाता है । __ भट्टारक श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी ने वि. सं. 1520 में यहाँ श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर की प्रतिष्ठापना करवायी थी । इस चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर में श्री हीरविजयसूरीश्वरजी की तीन फुट ऊँची प्रतिमा है, जिसपर सं. 1659 का लेख है। वि. सं. 1657 में श्री शान्तिनाथ भगवान के मन्दिर की प्रतिष्ठा श्री जिनचन्द्रसूरीश्वरजी के सुहस्ते होने का उल्लेख है । इस मन्दिर में दादा श्री जिनदत्तसूरीश्वरजी व श्री जिनकुशलसूरीश्वरजी की प्रतिमाएँ हैं, जिन पर 1661 का लेख उत्कीर्ण है । इस प्रकार यहाँ समय-समय पर अनेकों प्रकाण्ड विद्वान आचार्य भगवन्तों ने इस भूमि पर पदार्पण करके धर्म प्रभावना के अनेकों कार्य किये,वे उल्लेखनीय हैं । श्री आदिनाथ भगवान के बावन जिनालय मन्दिर में पिछले गंभारे के रंग मण्डप के द्वार से राजमहल तक सुरंग है, जो शायद राजा-रानियों के मन्दिर दर्शनार्थ आने के लिए बनवायी गयी होगी । क्योंकि यहाँ के राजा लोग मन्दिर के कार्यों में भाग लेते थे व उनमें जैन धर्म के प्रति अटल श्रद्धा थी । जिनालयों का दृश्य-सिरोही 378
SR No.002331
Book TitleTirth Darshan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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