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श्री शान्तिनाथ जिनालय सांडेराव
श्री साँडेराव तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री शान्तिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, श्वेत वर्ण, लगभग 75 सें. मी. ( श्वे. मन्दिर ) ।
तीर्थ स्थल साँडेराव गाँव के मध्य रावले के
पास ।
प्राचीनता यह तीर्थ स्थान 2500 वर्ष प्राचीन माना जाता है । राजा गंधर्वसेन के समय इस मन्दिर में श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा मूलनायक रूप में प्रतिष्ठित होने के उल्लेख मिलते हैं । वि. सं. 969 में जीर्णोद्धार होकर आचार्य श्री यशोभद्रसूरीश्वरजी द्वारा श्री महावीर भगवान की प्रतिमा मूलनायक रूप में प्रतिष्ठित होने का उल्लेख एक परिकर पर उत्कीर्ण है। तत्पश्चात् 16 वीं शताब्दी में पुनः जीर्णोद्धार के समय श्री शान्तिनाथ प्रभु की प्राचीन प्रतिमा अन्यत्र से मंगवाकर यहाँ स्थापित करने का उल्लेख है, जो अभी मूलनायक के रूप में विद्यमान है, जिस पर कोई लेख नहीं है । मूलनायक भगवान की दोनों प्राचीन प्रतिमाएँ
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भी यहीं विराजमान है, जिन पर लेप किया हुआ है । इस मन्दिर में एक आचार्य भगवान की मूर्ति के नीचे वि. सं. 1197 का लेख उत्कीर्ण है । मन्दिर में प्राचीन भोयरे भी हैं। वल्लभी भंग होने पर वहाँ से कई वस्तुएँ यहाँ लाने का भी उल्लेख है। प्राचीन समय में यहाँ ज्ञान भंडार रहने के भी उल्लेख मिलते हैं । यहाँ का इतिहास अति प्राचीन व गौरव शाली रहने के कारण यहाँ खुदाई करवाने पर अनेकों प्रकार के प्राचीन कलात्मक अवशेष मिलने की सम्भावना है।
विशिष्टता संडेरकगच्छ की स्थापना दसवीं शताब्दी में यहीं पर हुई थी। इस गच्छ में अनेकों प्रभावशाली आचार्य हुए जैसे आचार्य श्री शांतिसूरीश्वरजी के शिष्य समर्थ आचार्य श्री ईश्वरसूरीश्वरजी व मांत्रिक, प्रकांड विद्वान आचार्य श्री यशोभद्रसूरीश्वरजी आदि, जिन्होंने जैन धर्म प्रभावना के जगह-जगह पर अनेकों कार्य किये, जो आज भी अपनी अमर गाथा गाते हैं ।
कहा जाता है वि. सं. 969 में यहाँ पर हुए जीर्णोद्धार के समय प्रतिष्ठा महोत्सव पर आचार्य श्री यशोभद्रसूरीश्वरजी द्वारा दैविक शक्ति से आवश्यक प्रमाण घी, पाली से मंगाया गया था, जिसका वहाँ के व्यापारी को पता नहीं लगा । बाद में रुपये भेजने पर व्यापारी द्वारा रुपये लेने से इन्कार करने के कारण वे नव लाख रुपये लगाकर पाली में ही भव्य बावन जिनालय मन्दिर बनवाया गया, उ , जो आज भी नवलखा मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। प्रभु प्रतिमा अति ही चमत्कारिक है। विभिन्न प्रसंगों पर पार्श्वप्रभु के अधिष्ठायक श्री धरणेन्द्र देव मन्दिर में नागदेव के रूप में प्रकट होते हैं । मन्दिर के सामने उपाश्रय में श्री मणिभद्रयक्ष का स्थान है जहाँ अनेकों प्रकार की चमत्कारिक घटनाएँ घटती हैं प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ला 6 को ध्वजा चढ़ती हैं ।
अन्य मन्दिर वर्तमान में दो और जिन मन्दिर, एक मणिभद्र मन्दिर व एक गुरु मन्दिर हैं ।
कला और सौन्दर्य मन्दिर निर्माण की कला अजोड़ व अलौकिक है । मन्दिर का भाग समतल से 6 फुट नीचे है । वर्षा के समय मन्दिर में खूब पानी । भरता है, चौक में एक छोटासा छिद्र है । पानी छिद्र से होकर किस प्रकार कहाँ जाता है उसका अभी तक पता नहीं लगाया जा सका | प्रभु प्रतिमा अति ही