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श्री कोरटा तीर्थ
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तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 135 सें. मी. । प्राचीन मूलनायक भगवान (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल * कोरटा गाँव के बाहर एकान्त जंगल में ।
प्राचीनता किसी समय कोरटा एक प्रमुख नगर था व यहाँ पर जनसमृद्धि का कोलाहल विस्तृत आकाश को गुंजित करता था । इस मन्दिर की प्रतिष्ठापना चरम तीर्थंकर श्री महावीर भगवान के 70 वर्ष बाद श्री पार्श्वनाथ संतानीय श्री केशी गणधर के प्रशिष्य व श्री स्वयंप्रभसूरीश्वरजी के शिष्य उपकेशगच्छीय ओशवंश के संस्थापक श्री रत्नप्रभसूरीश्वरजी के सुहस्ते माघ शुक्ला पंचमी गुरुवार के दिन धनलग्न ब्रह्म मुहुर्त में होने का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है । राजा भोज की सभा के रत्न पण्डित श्री धनपाल ने वि. सं. 1081 में रचित 'सत्यपुरीय श्री 'महावीरोत्सह' में कोरटा तीर्थ का वर्णन किया है । 'उपदेश तरंगिणि' ग्रन्थ में वि.
श्री आदिनाथ भगवान-कोरटा
श्री महावीर भगवान मन्दिर-कोरटा
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