________________
श्री पार्श्वनाथ भगवान महिमापुर
श्री महिमापुर तीर्थ
तीर्थाधिराज * श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर ) ।
तीर्थ स्थल जियागंज स्टेशन से 4 कि. मी. दूर महिमापुर गाँव में
प्राचीनता * किसी समय यह स्थल मुर्शीदाबाद का एक अंग था । वि. की अठारहवीं सदी के प्रारम्भ में मुर्शीद कुलीखान ने इसे बसाया था । तत्पश्चात् इनके जमाई सूजाखान ने राज्य किया । मारवाड़ से यहाँ आये श्रेष्ठ श्री महताबरायजी व उनके पूर्वजों ने जन-कल्याण के अनेकों कार्य किये । अतः वि. सं.
86
*
1805 में सेठ महताबरायजी को जगत्सेठ की पदवी से विभूषित किया गया । जगतसेठ ने विदेशी कसौटी के पाषण से भव्य मन्दिर का निर्माण गंगा नदी के किनारे करवाया था। नदी में बाढ़ आ जाने के कारण मन्दिर को स्थानान्तर किया गया व उन्हीं पाषाणों से वि. सं. 1975 में उनके वंशज श्री सोभाग्यमलजी द्वारा मन्दिर का निर्माण करावाकर वही प्राचीन प्रतिमा इस मन्दिर में पुनः प्रतिष्ठित करवाई गई ।
विशिष्टता * बंगाल की पंचतीथीं का यह भी एक मुख्य स्थान है । यह क्षेत्र विक्रम की अठारहवीं सदी के प्रारम्भ में बसा तब से ही जाहोजलालीपूर्ण रहा । श्रेष्ठी श्री महताबरायजी को जगत्सेठ की पदवी से यहीं पर अलंकृत किया गया था । जगत्सेठ की क्षाति देश-परदेश में फैली हुई थी । इन्होंने अपनी बुद्धि व लक्ष्मीका सदुपयोग करके राज्य उत्थान, जन-कल्याण, व धर्म-प्रभावना के जो कार्य किये वे उल्लेखनीय हैं । जिनमें सम्मेतशिखर तीर्थ के जीर्णोद्धार का कार्य अति ही प्रशंसनीय व सराहनीय है । तत्कालीन यतिवर्य श्री निहालचन्दजी द्वारा रचित "बंगाल देश की गजल” में आँखों देखा हाल बताते हुए कहा है कि जगत्सेठ के यहाँ हमेशा याचकों रहती है व इनके द्वार से कोई भी निराश होकर नहीं लौटता । राज्य दरबार में इनका पूर्ण सम्मान था । अन्य मन्दिर * वर्तमान में इसके अतिरिक्त कोई मन्दिर नहीं हैं ।
जमघट
कला और सौन्दर्य * कसौटी पाषाण में निर्मित प्रभु - प्रतिमा व पबासन आदि अति ही सौम्य हैं ।
नोट : मन्दिर यहाँ से उत्थापन हो चुका है । मेटर सिर्फ याद स्वरूप व फोटु सिर्फ दर्शनार्थ "तीर्थदर्शन" में पुनः छापा है ।
पार्श्वनाथ जिनालय स्थल-महिमापुर