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तप कल्याणक
ज्ञान कल्याणक
श्री वासुपूज्य भगवान (दि.) - मन्दारगिरि
तीर्थ स्थल * मन्दारगिरी पर्वत पर ।
प्राचीनता * इस तीर्थ की प्राचीनता श्री वासुपूज्य भगवान के समय से ही मानी जाती है ।
प्राचीनकाल में अंग देश की राजधानी चम्पा थी व उसी चम्पा का विस्तार इस मन्दारगिरी तक था । चम्पा को मालिनी भी कहते थे, जिसका महाभारत में भी उल्लेख आता है । जो पश्चात् चम्पानगरी के नाम विख्यात हुई ।
किसी समय यह एक विराट, समृद्धिशाली व चम्पक वृक्षों से सुशोभित अतीव सुन्दर नगरी थी । आज के भागलपुर, नाथनगर, चम्पानाला आदि इसके अंग रहने का उल्लेख है । ___ श्री वासुपूज्य भगवान के पांचों कल्याणक होने का सौभाग्य इसी पावन नगरी को प्राप्त हुवा था । इसी नगरी के इस पवित्र मन्दारगिरि पर्वत के उद्यान में प्रभु ने अपने अंत समय में धर्मोपदेशना देते हुवे ध्यान मग्न होकर छः सौ मुनिगणों के साथ निर्वाणपद प्राप्त किया था अतः प्रभु का मोक्ष कल्याणक भी इस पावन पर्वत पर हुवा है । दिगम्बर मान्यतानुसार प्रभु को केवलज्ञान भी यहीं पर हुवा अतः तप, केवलज्ञान व मोक्ष कल्याणक इसी पर्वत पर होने की मान्यता है ।
प्रभु के उक्त कल्याणकों के पश्चात् भी इस पावन भूमि पर अनेकों जिनालयों का निर्माण अवश्य हुवा होगा । परन्तु कालक्रम से अनेकों बार इस नगरी को भी अवश्य क्षति पहुँची होगी । अतः अनेकों बार उत्थान-पतन हुवा होगा । भगवान महावीर के पूर्व व पश्चात् भी इस नगरी का उत्थान-पतन होने के संकेत मिलते है । राजा कुणिक द्वारा भी यहाँ नगरी बसाने
का उल्लेख आता है ।। ___ विक्रम की सतरहवीं सदी में मुनि श्री सौभाग्यविजयजी यात्रार्थ यहाँ पधारे तब भी इस मन्दारगिरी पावन पर्वत पर श्री वासुपूज्य भगवान के चरण चिन्हों के साथ दो जिनालय रहने का उल्लेख है ।
आज उन प्राचीन जिनालयों का पता लगाना कठिन है । वर्तमान में चम्पापुरी, नाथनगर, भागलपुर आदि स्थानों में कुछ जिनालय है उनका विवरण श्री चम्पापुरी तीर्थ में दिया गया है । जहाँ प्रभु के जन्म कल्याणक आदि हुवे हैं । मन्दारगिरि पर यही एक मात्र दिगम्बर मन्दिर है
मोक्ष कल्याणक
श्री मन्दारगिरी तीर्थ
तीर्थाधिराज * श्री वासुपूज्य भगवान, श्वेत वर्ण, खड्गासन, सवा सात फुट (लगभग 220 सें. मी) एवं तप केवलज्ञान व मोक्ष कल्याणक के प्रतीक चरण (दिगम्बर जैन मन्दिर) ।