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(अजातशत्रु) के राज्य काल में यह अति ही सुन्दर व समृद्धिशाली नगरी थी ।
विशिष्टता * युगादिदेव श्री आदिनाथ भगवान ने इस पवित्र भूमि को अपने चरणों से स्पर्श करके पवित्र बनाया है । श्री वासुपूज्य भगवान के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान व मोक्ष-पाँचों कल्याणक होने का सौभाग्य इस पावन भूमि को प्राप्त हुआ हैं । यही एक तीर्थ क्षेत्र है, जहाँ प्रभु के पांचो कल्याणक हुवे हैं। यह महान विशेषता हैं । श्री पार्श्वनाथ भगवान का भी धर्मदेशना हेतु इस पवित्र भूमि में पदार्पण हुआ था ।
श्री महावीर भगवान का यहाँ अनेकों बार पदार्पण हुआ । प्रभु का यहाँ समवसरण भी रचा गया था । भगवान महावीर के परम भक्त श्रावक कामदेव यहीं के थे । श्री सुदर्शन सेठ, महाराजा श्रीपाल, सती श्री चन्दनबाला की भी यह जन्म भूमि है । सती सुभद्रा भी यहीं पर हुई । (दिगम्बर मान्यतानुसार सती चन्दनबाला वैशाली के राजा चेटक की लड़की थी)। ___ दानवीर कर्ण, दधिवाहन, राजा करकुण्ड, श्रेणिक (बिम्बसार) के पुत्र अजातशत्रु आदि की भी यह
राजधानी थी । इतिहास प्रसिद्ध सेठ सुदर्शन को यहीं सूली पर चढ़ाया था । महामंत्र नवकार के प्रभाव से सूली सिंहासन हो गया था । सेठ सुदर्शन वृषभदत्त के पुत्र थे । पश्चात् सेठ सुदर्शन ने भी दीक्षा ग्रहण की व पाटलीपुत्र (गुलजार बाग) में स्वर्ग सिधारे ।
इस प्रकार अनेकों शूरवीर जैन नरेश, मुनिगण व श्रेष्ठीगण भी हुए जिन्होंने धर्म प्रभावना के जो कार्य किये वे स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेंगे । प्रभु के निर्वाण दिवस असाढ़ शुक्ला चतुर्दशी के दिन लड्डु चढ़ाया जाता है एवं मेले का आयोजन होता है । उस अवसर पर हजारों भक्तगण इकट्ठे होकर प्रभु भक्ति का लाभ लेते हैं ।
अन्य मन्दिर * इसी मन्दिर में प्रभु के कल्याणकों के याद स्वरूप अलग-अलग जगह पर प्रतिमाएँ विराजमान हैं । इनके अतिरिक्त नाथनगर व भागलपुर में श्वे. व दि. मन्दिर एवं मंदारगिरि पर्वत पर दि.मन्दिर हैं।
कला और सौन्दर्य * यह नगरी इतनी प्रभावशाली व प्राचीन होते हुए भी प्राचीन कला कम नजर आती
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श्री वासुपूज्य जिनालय (श्वे.) - चम्पापुरी