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साNe विसरमा सन् लतमा हेकासचिव लान्यासका अश्वनी
तासा नालि व्यरिणादेव ततेपी रितःपति तधनवाव
भी यहाँ कायम है । यह भी मत है कि सेठ सुदर्शन को यहीं सूली पर चढ़ाया था जो महामंत्र नवकार के प्रभाव से सिंहासन हो गया था ।
चम्पापुरी व राजगृही के बाद मगधदेश की राजधानी यहाँ रही ।
श्रुतधारी आर्य स्थूलिभद्रजी का जन्म व स्वर्गवास इस पावनभूमि में हुआ । आर्य श्री का कौशी वैश्या के वहाँ हुआ चातुर्मास उल्लेखनीय है । आज भी उस जगह स्मारक बने हुए हैं जो उनके आत्मबल की याद दिलाते हैं । ____ आर्यरक्षितसूरिजी ने यहाँ रहकर जैन साहित्य को कथानुयोग, चरणकरणानुयोगा द्रव्यानुयोग व गणितानुयोग इस प्रकार चार अनुयोगों में विभाजन किया था ।
वाचकवर्य श्री उमास्वातिजी ने यहीं पर 'तत्वार्थसूत्र' की रचना की थी । आचार्य श्री पादलिप्तसूरिजी ने राजा मुरुण्ड के शिर के रोग को दूर करके जैन धर्मावलम्बी
आर्य स्थूलभद्र स्वामीजी चरण - गुलजारबाग
किया था । अंत तक वहीं रहे थे । उनका यह भी मत है कि आर्य स्थूलिभद्रस्वामीजी के समय से ही श्वेताम्बर व दिगम्बर दो भेद हुए जो बाद में अलग संप्रदाय बने) आर्य स्थूलिभद्रस्वामी ई. सं. पूर्व 311 में यहीं पर स्वर्ग सिधारे ।
तत्पश्चात् मौर्यकाल में सम्राट श्री संप्रति प्रतिबोधक आर्य श्री सुहस्तिसूरिजी, विक्रम की पहली सदी में आचार्य श्री वजस्वामी, आर्य श्री रक्षितसूरि, आचार्य श्री उमास्वाती, दूसरी शताब्दी में पादलिप्तसूरि आदि प्रकाण्ड आचार्यगणों ने भी यहाँ पदार्पण करके धर्म प्रभावना के अनेकों कार्य किये है । ___ पता चलता है कि लगभग सातवीं सदी तक यहाँ जैनों की अच्छी जाहोजलाली रही । बाद में यह शहर छोटे से गाँव में परिवर्तित हो गया था ।
विक्रम की सत्रहवीं सदी में आगरा से कुंवरपाल व सोनपाल बंधुगण संघ लेकर यहाँ आये उस समय यहाँ महतीहण जाति के जैन रहते थे ।
अठारहवीं सदी में बादशाह जहाँगीर के जवेरी हीराचन्द यहाँ रहते थे । जिन्होंने एक मन्दिर व दादावाड़ी का निर्माण करवाया था ।
उस प्राचीन नगर को आज पुनः बिहार की राजधानी रहने का सौभाग्य मिला है ।
विशिष्टता * इस नगर की स्थापना राजा उदयन ने की थी पश्चात् महापद्मनन्द, चन्द्रगुप्त आदि पराक्रमी राजा हुए । ये सारे राजा जैन धर्मावलम्बी थे । सेठ सुदर्शन यहीं पर स्वर्ग सिधारे । इनका स्मारक अभी
साधनास्थल
HUICHUIGIGT मंगलम् स्थलिभद्राधा,
जैन धोक्ताला
आर्य स्थुलिभद्र स्वामी मन्दिर - गुलजारबाग
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