SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना भगवान महावीर की 25वीं निर्वाण शताब्दी के पावन उपलक्ष में आम उपयोगार्थ ई. सं. 1974 में प्रारंभ किया गया "तीर्थ-दर्शन" पावन ग्रंथ का संशोधनीय कार्य ई. सं. 1980 में सम्पूर्ण हुवा था, जिसका विमोचन ई. सं. 1981 में त्रीदिवसीय विराट समारोह के साथ यहाँ चातुर्मासार्थ विराजित प. पूज्य श्री जयन्तसेन विजयजी (वर्तमान प. पू. आचार्य भगवंत श्री जयन्तसेनसुरिजी) की पावन निश्रा व भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई एवं तमिलनाडु के मुख्य मंत्री श्री एम. जी. रामचन्द्रन व कई विशिष्ट महानुभावों के सानिध्यता में सुसम्पन्न हुवा था । इस ढंग का इतिहास में प्रथम व उच्च कोटि का कार्य रहने के कारण सभी ने इस ग्रंथ की अति ही प्रशंसा व सराहना व्यक्त की । विमोचन पश्चात् तीर्थाधिराज भगवन्तों व आचार्य भगवंतो के कर कमलों में वह पावन ग्रंथ समर्पित किया गया । आचार्य भगवन्तों, मुनि भगवंतो, संस्थाओं के व्यवस्थापकों व कई विशिष्ट महानुभावों ने अपने पत्रों द्वारा मुक्त कंठ से इस ग्रंथ की प्रशंसा, अनुमोदना व सराहना की । यह बताते हर्ष होता है कि हमारे उक्त प्रकाशन के पश्चात् प्रायः सभी तीर्थ स्थानों पर यात्रीओं का आवागमन काफी बढ़ा है व तीर्थ-स्थलों का भी जीर्णोद्धार आदि होकर साधन-सुविधाएँ भी काफी बढ़ी है। यह पावन ग्रंथ दैविक परमाणुओं की उर्जा से भरा रहने के कारण पुण्योपार्जनकारी, पापविनाशकारी व आत्महितकारी है अतः बच्चों, युवकों एवं वृद्धजनौं सभी के लिये अति उपयोगी सिद्ध हुवा है । इस पावन ग्रंथ का दुरुपयोग न हों उसीको ध्यान में रखकर इसकी कापी राइट प्रांरभ से रिजर्व करवाली थी । क्योंकि हमारा उद्देश्य सिर्फ संशोधन व प्रचार मात्र का था व अभी भी है । प्रकाशन के तुरन्त पश्चात् सभी प्रतियाँ वितरण हो चुकी थी परन्तु मांग जारी थी । अंग्रेजी में भी मांग रहने के कारण अंग्रेजी का भी अनुवाद करवाया गया । पुनः प्रकाशन का भी निर्णय लिया गया परन्तु संयोगवश प्रारंभ से इस कार्य के प्रेरक, प्रयासी, संशोधक व सम्पादक हमारे संस्थापक मानद मंत्री श्री यू. पन्नालालजी वैद की तबियत अस्वस्थ हो जाने के कारण कार्य आगे नहीं बढ़ सका । इस कार्य के संकलन में इनके अन्य सहयोगी भी थे, परन्तु कार्य आगे बढ़ने में तकलीफ महसूस हो रही थी क्योंकि समय काफी बीत चुका था । समय काफी बीत जाने के कारण सभी तीर्थ क्षेत्रों पर प्राचीनता व विशिष्टता के अतिरिक्त बाकी सभी विषयों में काफी परिवर्तन हो चुका था । अतः टाइप सेट भी पुनः करवाना आवश्यक हो गया था । फिल्म का रंग भी प्रायः परिवर्तन हो चुका था अतः लगभग पूरी सामग्री नई जुटानी थी । हमारा संशोधन का कार्य पूरा हो जाने के कारण हमने यही उपयुक्त समझा कि इस कार्य को संभालने के लिये श्री जैन प्रार्थना मन्दिर ट्रस्ट से अनुरोध किया जाय व उन्हें कापी राइट के साथ आवश्यक सहयोग भी दिया जाय । दिनांक 14.11.1999 को संभलाने का निर्णय लेकर पुरानी सारी फिल्म आदि के साथ कार्य इस ट्रस्ट को सोम्पा गया । आवश्यकतानुसार सहयोग देने का भी आश्वासन दिया गया । अतः अब यह प्रकाशन हमारे निर्देशनानुसार उनके द्वारा आवश्यकतानुसार होता रहेगा । आपको यह भी बताते हर्ष हो रहा है कि श्री जैन प्रार्थना मन्दिर हमारे प्रांगण में ही निर्मित है व उस ट्रस्ट में भी प्रायः सभी ट्रस्टीगण व कार्यकर्ता हमारे सदस्य ही हैं । संशोधन के पश्चात् पूर्ण धार्मिक क्षेत्र का कार्य रहने के कारण उस ट्रस्ट से हो रहा है क्योंकि हमारा क्षेत्र शिक्षण का है । प्रभु कृपा से इस बार भी प्रकाशन उच्च स्तर का हुवा है उसका श्रेय हमारे संस्थापक मानद मंत्री श्री यू. पन्नालालजी वैद (जो प्रारंभ से इस कार्य के प्रेरक, संशोधक व सम्पादक है) व उनके साथिओं को है । प्रभु की असीम कृपा से ही यह कार्य सुसम्पन्न हो सका है। प्रभु से प्रार्थना है कि ट्रस्ट का कार्य निरन्तर आगे बढ़ता रहे व यह तीर्थ-दर्शन का सन्देश घर-घर में पहुंचे जिससे सभी पुण्य के लाभार्थी बने इसी शुभ कामना के साथ वास्ते, श्री महावीर जैन कल्याण संघ, (रजि.) जे. मोतीचन्द डागा चेन्नई, मार्च 2002 अध्यक्ष
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy