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गणधर इन्द्रभूति गौतम अग्निभुति व वायुभुति का जन्म यहीं हुआ था । ये तीनों भाई थे ।
ई. सं. 410 में चीनी यात्री फाहियान यात्रार्थ आये तब इस स्थल को साधारण पाया था । उसके पश्चात् कुमारगुप्त ने ई. सं. 424-454 में बोद्ध साधुओं के लिए एक विशाल मठ बनवाया । पश्चात् नालन्दा में विश्वविद्यालय की स्थापना होने से बोद्ध विद्या का एक बड़ा केन्द्र बन गया । सातवीं सदी में आये चीनी यात्री हुएनसाँग ने इस विश्वविद्यालय की व्याख्या की है व विद्यालय में रहकर अभ्यास किया ऐसा बताया जाता है । लगभग तेरहवीं सदी तक इस विद्यालय के रहने का अनुमान है । पश्चात् बखत्यारखिलजी द्वारा इसका विनाश किये जाने का उल्लेख है । भगवान महावीर के समय व पश्चात् यहाँ जैन धर्म का अच्छा प्रभाव रहा है जिसका इतिहास साक्षी हैं । अगर खोद कार्य करके अनुसंधान किया जाय तो महत्वपूर्ण सामग्री के मिलने की सम्भावना हैं । भगवान महावीर से गोसाले का मिलाप यहीं हुआ था । चौदहवीं सदी में विरचित "विविध तीर्थ कल्प" में श्री जिनप्रभसूरिजी ने इस तीर्थ की व्याख्या की है । सं. 1565 में श्री हंससोमविजयजी ने यहाँ 16 मन्दिर रहने का उल्लेख किया है । सं. 1664 में पं. जयविजयजी ने यहाँ 17 मन्दिरों के होने का उल्लेख किया है । सं. 1750 में पं. सौभाग्यविजयजी ने एक मन्दिर एक स्तूप व बिना प्रतिमाओं के अन्य जीर्ण अवस्था में रहे कुछ मन्दिर होने का उल्लेख किया है ।
विशिष्टता * भगवान महावीर के ग्यारह गण रों में से तीन गणधरों की यह जन्मभमि होने के कारण यहाँ की महान विशेषता है । लब्धि के दातार प्रभु वीर के प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामीजी के जन्म से यह भूमि पावन बनी है । भगवान महावीर का भी इस भूमि में अनेकों बार पदार्पण हुआ है व प्रभु के धर्मोपदेश से यहाँ पर अनेकों प्राणियों ने अपना जीवन सफल बनाया है । अतः इस भूमि की महानता अवर्णनीय है ।
अन्य मन्दिर * वर्तमान में इस मन्दिर के अतिरिक्त एक दिगम्बर मन्दिर हैं ।
कला और सौन्दर्य * श्वेताम्बर मन्दिर में प्राचीन प्रतिमाएँ अति ही कलात्मक सन्दर व दर्शनीय हैं । नालन्दा विश्व विद्यालय-संग्रहालय में प्राचीन जिन
लब्धि के दातार श्री गौतम स्वामीजी महाराज-कुण्डलपुर
श्री कुण्डलपुर तीर्थ
तीर्थाधिराज * श्री गौतम स्वामीजी महाराज, चरणपादुका, श्याम वर्ण, लगभग 25 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल * नालन्दा से 3 कि. मी. दूर कुण्डलपुर गाँव में । । प्राचीनता * प्राचीन काल में इसे गुव्वरगाँव व बड़गाँव भी कहते थे । नालन्दा व कुण्डलपुर गाँव राजगृही के उपनगर थे । भगवान महावीर के तीन
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