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श्री ऋजुवालुका
तीर्थाधिराज * श्री महावीर भगवान, चतुर्मुख चरण पादुकाएँ, श्वेत वर्ण, लगभग 15 सें. मी. । ( श्वे. मन्दिर ) ।
तीर्थ स्थल बराकर गाँव के पास बराकर नदी के तट पर ।
प्राचीनता आज की बराकर नदी को प्राचीन काल में ऋजुबालुका नदी कहते थे । श्वेताम्बर शास्त्रानुसार भगवान महावीर ने जंभीय गाँव के बाहर व्यावृत चैत्य के निकट ऋऋजुबालुका नदी के तट पर श्यामक किशान के खेत में शालवृक्ष के नीचे वैशाख शुक्ला 10 के दिन पिछली पोरसी के समय विजय मुहूर्त में केवलज्ञान प्राप्त किया। तत्काल इन्द्रादिदेवों ने समवसरण की रचना की । विरीत ग्रहणादि लाभ का अभाव जानते हुवे भी प्रभु ने कल्प आचार के पालन हेतु क्षणचर धर्मोपदेशना दी । यह प्रथम देशना निष्फल गई, जिसे आश्चर्यक (अछेरा) माना गया है।
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आज जनक नाम का गाँव यहाँ से 4 कि. मी. है। वहाँ शाल वृक्षों युक्त घना जंगल भी है। जनक गाँव का असल नाम जंभीय गाँव भी कहा जाता है एक मतानुसार राजगृही से 56 कि. मी. की दूरी पर वर्तमान जमुई गाँव है वही जंभीय है व उसके पास की क्वील नदी ही ऋजुबालुका है । लेकिन अभी तक कोई प्रमाणिकता नहीं मिलती है।
वि. की सोलहवीं सदी में पं. श्री हंससोमविजयजी, सत्रहवीं सदी में श्री विजयसागरविजयजी व श्री जय विजयजी, अठारहवीं सदी में श्री सौभाग्यविजयजी ने अपनी तीर्थ मालाओं में यहाँ का वर्णन किया है ।
इन तीर्थ मालाओं में गाँव के नाम आदि के नामों में कोई मतभेद नहीं है। सिर्फ दूरी एक-एक तीर्थ माला में अलग-अलग बताई है । सम्भवतः समय-समय पर पगडंडी या सड़क का रास्ता बदले जाने से दूरी में कुछ फर्क हुआ हो अतः इसी स्थान पर, जहाँ सदियों से मानते आ रहे हैं, भगवान को केवलज्ञान हुआ मानना ही उचित है ।
श्री महावीर भगवान केवलज्ञान स्थल ऋजुबालुका