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________________ श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ तीर्थ जा सकता है । शंका करना नहीं व न पीछे मुड़कर देखना । उक्त दृष्टांत पर राजा द्वारा अन्वेषण करवाने पर तीर्थाधिराज * श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्याम प्रतिमा प्राप्त हुई । राजा ने प्रतिमाजी को विशाल वर्ण, अर्द्ध पद्मासनस्थ, लगभग 107 सें. मी. । जनसमूह के बीच धूमधाम के साथ वैसे ही वाहन पर तीर्थ स्थल * शिरपुर गाँव के एक छोर पर । रखकर उसे एलिचपुर ले जाने का उपक्रम किया, वाहन प्राचीनता * इस भव्य चमत्कारी प्रतिमा का के साथ प्रतिमा चली । पर बीच में राजा के मन में इतिहास बहुत ही प्राचीन है । श्वेताम्बर मान्यतानुसार शंका हुई कि इतनी बड़ी प्रतिमा गाड़ी के साथ आती कहा जाता है, राजा रावण के बहनोई पाताल लंका के है या नहीं । इसलिए उसने शांत हृदय से पीछे मुड़कर राजा खरदूषण के सेवक माली व सुमाली ने पूजा देखा तो प्रतिमाजी उसी जगह पर एक पेड़ के नीचे निमित्त इस प्रतिमा का निर्माण बालू व गोबर से आकाश में अधर स्थिर हो गई । कहा जाता है उस किया था । जाते समय प्रतिमाजी को नजदीक के समय इस प्रतिमाजी के नीचे से घुड़सवार निकल जलकुण्ड में विसर्जित किया था । शताब्दियों तक जाय इतनी ऊँची अधर थी । प्रतिमा जलकुण्ड में अदृश्य रही जो कि विक्रम सं. राजा इस चमत्कारिक घटना से प्रभावित हुआ । 1142 में चमत्कारिक घटनाओं के साथ पुनः प्रकट वहीं पर एक भव्य मन्दिर का निर्माण करवाया व उस हुई । सं. 1142 माघ शुक्ला 5 के दिन नवांगी मन्दिर में प्रभु को प्रतिष्ठित करवाना चाहा । प्रतिष्ठा टीकाकार आचार्य श्री अभयदेवसूरीश्वरजी के सुहस्ते के समय राजा के मन में अहंकार आने के कारण, नवनिर्माणित संघ मन्दिर में प्रतिष्ठित करवाया गया । लाख कोशिश करने पर भी प्रतिमा अपने स्थान से नहीं तत्पश्चात् श्री भावविजयजी गणि के सदुपदेश से हिली । मन्दिर सूना का सूना ही रहा । जो आज भी मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाकर उन्हीं के सुहस्ते विक्रम ‘पावली मन्दिर' के नाम से प्रसिद्ध है । जिस पेड़ के सं. 1715 चैत्र शुक्ला 5 के दिन शुभ मुहूर्त में प्रतिष्ठा । नीचे प्रतिमा स्थिर हुई थी वह भी मन्दिर के नजदीक पुनः सम्पन्न हुई । ही स्थित है । प्रतिष्ठा के समय उपस्थित आचार्य श्री विशिष्टता * श्वेताम्बर मान्यतानुसार कहा जाता है कि राजा रावण के बहनोई पाताल लंका के राजा खरदूषण एक बार इस प्रदेश पर से विमान द्वारा गमन कर रहे थे । पूजा व भोजन का समय होने से नीचे उतरे । राजसेवक माली और सुमाली अनवधान से पूजा के लिए प्रतिमा लाना भूल गये थे, इसलिए पूजा के निमित्त यहाँ पर इस प्रतिमा का बालू व गोबर से निर्माण किया और इस स्थान से वापिस जाते समय नजदीक के जलकुण्ड में विसर्जित किया था । प्रतिमा शताब्दियों तक जलकुण्ड में अदृश्य रही। समयान्तर में इस कुण्ड के जल का उपयोग करने पर एलिचपुर के राजा श्रीपाल का कुष्टरोग निवारण हुआ। इस आश्चर्यमयी घटना पर विचार विमग्न चिन्तन करते समय राजरानी को स्वप्न में दृष्टान्त हुआ कि इस जलकुण्ड में श्री पार्श्वप्रभु की प्राचीन व चमत्कारिक प्रतिमा विराजमान है । और राजा टोटे की गाड़ी में सात दिन के बछड़ों को जोतकर उसपर प्रतिमाजी को विराजमान करके बाह्य दृश्य-अंतरिक्षजी खुद सारथि बनकर मन चाहे वहाँ निशंक मन से ले 209
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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