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नवकार महामंत्र
परमेष्ठी नमस्कार सर्व मंगलों में प्रधान, विश्व प्रेम का प्रतीक व सर्व धर्मों का मूल है । इस महामंत्र में विश्व के तमाम अरिहंतादि देवों को नमस्कार किया है । इनके आलम्बन से राग द्वेष एवं मोह का क्षय होकर शुभ भाव प्रकट होते हैं । यह महामंत्र सभी पापों का नाशक है व सभी मंगलों का उत्पादक है । यह मंत्र दुष्कृत का क्षय करता है व पुण्य का संचार करता है । चौदह पूर्वी भी अन्त समय में इस महामंत्र का स्मरण करते हैं । इसीलिये इसको चौदह पूर्व का सार बताया है । श्री पंचपरमेष्ठी नवकार महामंत्र अचिन्त्य महिमा से मंडित है ।
इस महामंत्र से रोग निवारण मंत्र, लक्ष्मी-प्राप्ति मंत्र सर्वसिद्धिमंत्र अचिन्त्य फलप्रदायक मंत्र, पापभक्षिणी विद्यारूप मंत्र, रक्षा मंत्र, अग्नि निवारक मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, विवेक प्राप्ति मंत्र, सर्वकार्य साधक मंत्र, सर्व शान्ति-दायक मंत्र, व्यन्तर बाधा विनाशक मंत्र, आदि अनेक मंत्रों की उत्पत्ति हुई है, जिसकी कई आराधकों ने आराधना करके विस्तार पूर्वक वर्णन किया है ।
इसके स्मरण मात्र से शान्ति, तुष्टि व पुष्टि की प्राप्ति होती है । शास्त्रों में भी इस महामंत्र की आराधना को विश्व सुख का अद्वितीय कारण माना है । जैनागमों का प्रथम सूत्र श्री पंचमंगल याने नमस्कार सूत्र है ।
ऐसे महामंत्र का श्रद्धापूर्वक स्मरण कर देवाधिदेव तीर्थाधिराजों को भावपूर्वक वन्दन करें