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તીર્થ - દર્શન ગ્રંથ સમ્યગ દર્શનની પ્રાપ્તિ શુદ્ધિ અને વૃદ્ધિ કરનાર છે, વૃદ્ધોને તથા બીમાર આત્માઓને તેનું દર્શન આલ્હાદકજનહીં કિન્તુ આત્મ શાન્તિ પ્રગટાવનાર છે એમ અમને લાગ્યુ છે.
સાબરમતી
महाजाह - हि. १५.८.१७८१
-આચાર્ય ભદ્રંકરસૂરિ
आपने "तीर्थ दर्शन" के भाग दो प्रकाशित कर जो समाज की सेवा की है। यह सदा स्मरणीय रहेगी पुस्तकें देखकर अति प्रसन्नता हुई । शेष आनन्द ।
पालनपुर - दि. 22-9-1982
-आचार्य इन्द्रदिन्नसूरि
यह ग्रंथ “घर बैठे गंगा" का कर्तव्य पूर्ण करने वाला सिद्ध होगा । कोयम्बतूर दि. 6-10-1981
-आचार्य विक्रमसूरि
तीर्थ दर्शन ग्रंथ का दर्शन करते हुवे हृदय हर्ष से नाच उठा आपकी महेनत की भूरी भूरी अनुमोदना हैं । इन्दोर- दि. 12-10-1981 - आचार्य यशोभद्र विजय, विमलभद्र विजय આગ્રંથ ને જોતાં અનેરો આહલાદ અનુભવાય છે. જાણે સાક્ષાત એ ભવ્ય તીર્થોના દર્શન કરતાં કર્મ -નિર્જરા કરતા હોઈએ. मुम्जा हि. २४-११-१७८१ -આચાર્ય ગુણસાગરસૂરિ
तीर्थ दर्शन के लिये जितना लिखे उतना कम ही है आपका श्रम भी सराहनीय है ऐसे और भी प्रकाशन आपके द्वारा अधिक हो ऐसा हमारा आशीर्वाद है ।
पाटण - दि.
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- आचार्य अशोकचन्द्रसूरि
18-5-1983
"तीर्थ-दर्शन" को देखकर और दर्शन करते आत्मा को खूब आनन्द हुआ और प्रतिमा सबका यहाँ बैठे यात्रा हुवे ऐसा भाव प्रगट हुवे आनन्द ।
भावनगर - दि.
18-10-1983
- आचार्य विजय मोतिप्रभसूरि તમારી સંસ્થાઓ આવું મહાન તીર્થ દર્શન પુસ્તક માહીતી સાભર છપાઈ છે અને એજ કારણે ઘેર બેઠા પણ તીર્થ - દર્શન પુસ્તક હાથમાં હોયતો વાંચવાથી યાત્રા નો લાભ થાય.
सभी हि. २८-१०-१९८३
ग्रंथ खोलकर अन्दर के तीर्थ और मूल प्रतिमा का फोटु दर्शन कर भक्ति से भाव सम्यगदर्शन माफक ग्रंथ प्रकाशित करके जैन शासन की शोभा और वृद्धि करो यही भव्य पालीताना दि. 15-11-1983
-આચાર્ય પ્રસન્નચન્દ્રસૂરિ
विभोर हो गया- ऐसे और भावना ।
-आचार्य विजयरामरत्नसूरि
घर बैठे हमेशा देवदर्शन का लाभ मिलेगा और उस सबका सम्यग दर्शन की शुद्धि भी होगी और मिथ्यात्वी आत्मा समकित भी प्रायः पावेगा यह मेरा अभिप्राय है।
- आचार्य भद्रसेनसूरि
दि. 28-11-1983
इसको हाथ में लेने के बाद छोड़ने का ही मन नहीं होता है । सैकड़ो ही नहीं अपितु हजारों भव्यात्मा इस ग्रंथ के अवलोकन मात्र से ही चित में तल्लीनता व मन ऐकाय बनाकर कर्म की निर्जरा कर सकेंगे।
મુનિ હેમચન્દ્રસાગર
तीर्थ दर्शन में सामान्य में निगूढ़तम वैशिष्ट्य का अनुसंधान किया है। प्रकाशन प्रसारण का भविष्य प्रांजल एवं समुज्वल रहे यही दादा गुरुदेव से प्रार्थना
दि.
बम्बई - दि. 17-2-1981
- मुनि श्री नयरत्न विजय, जयरत्न विजय આ ગ્રંથ એક જૈન સંઘની અમૂલી દૈન હૈ જોતાંજ મન-મોર નાચી ઉઠે અને એના એક-એક પાના દર્શન - મોહનીય કર્મનો ચૂરો બોલાવી સમ્યગ દર્શનની શુદ્ધિ કરાવી આપે, એવો સમર્થ આં ગ્રંથ કોણ ભલો ન ઈચ્છે.
जलात हि. 3१७-१८८१
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5-12-1981
- मुनि श्री महिमाप्रभसागर
तीर्थ दर्शन भक्ति धारा को प्रवाहित करने की दिशा में धार्मिक साथ ही ऐतिहासिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण एवं अद्भुत उपयोगी साहित्यिक अनुष्ठान है। वीरायतन- राजगृह- दि.
9-6-1983
- उपाध्याय अमरमुनि
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