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श्री शीतलनाथ भगवान (श्वे.)-आगरा
श्री आगरा तीर्थ
प्रतिष्ठा होने के उल्लेख तीर्थ-मालाओं में मिलते हैं । __ चिन्तामाणि पार्श्वनाथ भगवान की यशब नामक कीमती पाषण से निर्मित इस अलौकिक प्रतिमा की प्रतिष्ठा राज्य-सम्मान प्राप्त श्रेष्ठी श्री मानसिंहजी द्वारा परमपूज्य जगतगुरु आचार्य श्री हीरविजयसूरीश्वरजी के सुहस्ते वि. सं. 1639 में विराट महोत्सव के साथ सम्पन्न हुई थी ।
पास ही चौक में सभामण्डप के बीच श्री शीतलनाथ भगवान की श्यामवर्णी चमत्कारिक भव्य प्राचीन प्रतिमा विराजमान हैं, जो यहाँ के एक मस्जिद में से प्राप्त हुई थी जिसे श्वेताम्बराचार्य के सुहस्ते प्रतिष्ठित करवाया गया ।
विशिष्टता * अकबर बादशाह ने तपस्विनी श्राविका श्री चंपा के मुख से जैनाचार्य श्री हीरविजयसूरीश्वरजी की विद्वता के बारे में सुना तो बादशाह को सूरिजी के दर्शन की तीव्र अभिलाषा हुई । तुरन्त ही बादशाह ने आचार्य श्री को फतेहपुर सीकरी पधारने के लिए अपने अहमदाबाद के सूबेदार मार्फत आमंत्रण भेजा । उस समय आचार्य श्री गंधार विराजते थे । आचार्य श्री ने धर्म प्रभावना के अनेकों कार्य होने की सम्भावना समझकर श्री संघ की अनुमति से मंजूरी प्रदान की व अपने शिष्ट मण्डल सहित विहार करके फतेहपुर-सीकरी होते हुए बादशाह के अति आग्रह से वि. सं. 1639 के ज्येष्ठ माह में आगरा पहुँचे । तब इसी मन्दिर के उपाश्रय में ठहरे थे । कहा जाता है कि बादशाह अकबर आचार्य श्री से मिलने यहीं पर आया करते थे।
अकबर बादशाह ने आचार्य श्री के उपदेश से जैन तत्त्व से प्रभावित होकर जीव-हिंसा बन्द करने आदि अनेकों विषयों पर फरमान जारी किये थे, जो अभी भी उपलब्ध हैं ।
आचार्य श्री को यहीं पर राज दरबार में ससम्मान जगतगुरु पद से विभूषित किया था । बादशाह अकबर के पास स्थित अमूल्य ग्रन्थ-भंडार आचार्य श्री को भेंट प्रदान किया था, जो इस उपाश्रय में विद्यमान है ।
अकबर के दरबार में सम्मान प्राप्त श्रेष्ठी श्री मानसिंह, संघवी चन्द्रपाल श्री हीरानन्द, थानसिंह, दुर्जनशल्य आदि श्रावकों ने अनेकों मन्दिर बनवाये थे, जिनकी प्रतिष्ठा आचार्य विजयहीरसूरीश्वरजी के सहस्ते सम्पन्न हुई थी । जहाँगीर के मंत्री कुँवरपाल व
तीर्थाधिराज * श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल * यमुना नदी के तटपर स्थित आगरा शहर के रोशन मोहल्ले में ।
प्राचीनता * इस शहर का इतिहास प्राचीन है । शिलालेखों में उग्रसेनपुर, अर्गलपुर आदि नामों का उल्लेख है । वि. सं. पूर्व 206 से 166 तक यह नगर सम्राट अशोक के अधिकार में रहने का उल्लेख मिलता है । परन्तु इतने प्राचीन कलात्मक अवशेष आज यहाँ उपलब्ध नहीं हैं । संभवतः कालक्रम से भूकंप या किसी कारणवंश यह क्षेत्र ध्वस्त हुआ होगा।
वि. की पन्द्रहवीं सदी में विध्वंस हुए स्थान पर बहलोल लोदी ने पुनः नगर बसाना प्रारंभ किया व उनके पुत्र सिकन्दर लोदी ने इसको भारत का पाटनगर बनाया । तब इस क्षेत्र का पुनः रूप बदला ।
सम्राट अकबर के समय आचार्य श्री हीरविजयसरीश्वरजी का वि. सं. 1639 में यहाँ पदार्पण हआ । उस समय यहाँ अनेकों जैन मन्दिरों की आचार्य श्री के सहस्ते 144