________________
श्री आदिनाथ प्रभु के प्राचीन चरण चिन्ह (श्वे.)
- हस्तिनापुर
विशिष्टता * युगादिदेव श्री आदीश्वर भगवान दीक्षा पश्चात् निर्जल व निराहार विचरते हुए 400 दिनों के बाद वैशाख शुक्ला तृतीया के शुभ दिन यहाँ पधारे । भोली-भाली जनता दर्शनार्थ उमड़ पड़ी । राजकुमार श्री श्रेयांसकुमार को अपने प्रपितामह के दर्शन पाते ही जाति-स्मरण-ज्ञान हुआ, जिससे आहार देने की विधि को जानकर इक्षु रस ग्रहण करने के लिए भक्ति भावपूर्वक प्रभु से आग्रह करने लगा । प्रभु ने कल्पिक आहार समझकर श्री श्रेयांसकुमार के हाथों पारणा किया । देवदुंदुभियाँ बजने लगी, जनता में हर्ष का पार न रहा । उसी दिन यहाँ से वर्षीतप के पारणे की प्रथा
प्रारंभ हुई । कहा जाता है कि भगवान का इक्षु रस से पारणा होने के कारण उस दिन को (इक्षु) अक्षय तृतीया कहने लगे ।
श्री शान्तिनाथ भगवान, श्री कुंथुनाथ भगवान व श्री अर्हनाथ भगवान के च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान ऐसे बारह कल्याणक होने का सौभाग्य इस पवित्र भूमि को प्राप्त है । __ श्री मल्लिनाथ भगवान के समवसरण की रचना यहाँ पर भी हुई थी । प्रभु ने यहाँ 6 राजाओं को प्रतिबोध देकर जैन-धर्म का अनुयायी बनाया था । ___ श्री मुनिसुव्रतस्वामी, श्री पार्श्वनाथ व चरम तीर्थंकर श्री महावीर भगवान का भी यहाँ पदार्पण हुआ था । श्री पार्श्वप्रभु ने यहाँ के राजा श्री स्वयंभु को प्रतिबोध देकर जैन धर्म का अनुयायी बनाया जो दीक्षा अंगीकार करके प्रभु के प्रथम गणधर बने ।
श्री भरत चक्रवर्ती से लेकर कुल 12 चक्रवर्ती हुए, जिनमें 6 चक्रवर्तियों ने इस पावन भूमि में जन्म लिया। रामायण-काल के श्री परशुरामजी का जन्म भी यहीं हुआ था । पाण्डवों-कौरवों की राजधानी थी । ___ भगवान श्री महावीर के पश्चात् भी अनेकों प्रकाण्ड विद्वान आचार्यगण यहाँ यात्रार्थ पधारे । अनेकों संघों का यहाँ आवागमन हुआ । ___ अतः ऐसे महान आत्माओं के जन्म व पदार्पण से पवित्र हुई भूमि की महानता का किन शब्दों में वर्णन किया जाय । इस पावन भूमि में पहुंचते ही हमारे कृपालु तीर्थंकरों आदि का स्मरण हो आता है ।
प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा, फाल्गुन पूर्णिमा व वैशाख शुक्ला तृतीया को श्वेताम्बर मन्दिर में व कार्तिक शुक्ला अष्टमी से पूर्णिमा तक दिगम्बर मन्दिर में मेलों का आयोजन होता है । __ अन्य मन्दिर इन मन्दिरों के अतिरिक्त एक दि. मन्दिर है । यहाँ से लगभग 2 कि. मी. दूर श्वे. व दि. समाज की अलग-अलग स्थानों पर चार-चार देरियाँ बनी हुई हैं । तीन तीर्थंकरों के कल्याणक स्थलों के स्मरणार्थ व मल्लिनाथ भगवान के समवसरण स्थल के स्मरणार्थ श्वे. देरियों में प्रभु के चरण व दि. देरिया में स्वस्तिक स्थापित हैं । यहीं पर एक श्वे. प्राचीन स्तूप (जिसके ऊपर लघु मन्दिर का निर्माण हुवा हैं) में श्री आदिनाथ प्रभु के चरण स्थापित है। यह स्थान
श्री आदिनाथ प्रभु पारणास्थल (श्वे.)-हस्तिनापुर
136