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श्री हस्तिनापुर तीर्थ
तीर्थाधिराज * 1. श्री शान्तिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, गुलाबी वर्ण, लगभग 90 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) ।
2. श्री शान्तिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण (दि. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल * हस्तिनापुर गाँव में ।
प्राचीनता * इस तीर्थ की प्राचीनता यगादिदेव श्री आदीश्वर भगवान से प्रारम्भ होती है । शास्त्रों में इसके नाम गजपुर, हस्तिनापुर, नागपुर, आसन्दीवत, ब्रह्मस्थल, शान्तिनगर कुंजरपुर आदि भी आते हैं ।
भगवान आदिनाथ ने अपने पुत्र बाहुबलीजी को पोदनापुर व हस्तिनापुर राज्य दिये थे । पोदनापुर में बाहुबलीजी व हस्तिनापुर में उनके पुत्र श्री सोमयश राज्य करते थे । सोमयश के लघु भ्राता श्री श्रेयांसकुमार ने भगवान श्री आदिनाथ को यहीं पर इक्षु रस से पारणा करवाया था । उस स्मृति में श्री श्रेयांसकुमार द्वारा यहाँ पर एक रत्नमयी स्तूप का निर्माण करवाकर श्री आदिनाथ प्रभु की चरण-पादुकाएँ स्थापित कराने
का उल्लेख है । श्री आदिनाथ भगवान के पश्चात् श्री शान्तिनाथ भगवान, श्री कुंथुनाथ भगवान व श्री अर्हनाथ भगवान के च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान कल्याणक यहाँ हुए । उनकी स्मृति में तीन स्तूप निर्मित होने का उल्लेख है । उन प्राचीन स्तूपों व मन्दिरों का आज पता नहीं, क्योंकि इस नगरी का अनेकों बार उत्थान-पतन हुवा है । जगह-जगह पर अन भूगर्भ से अनेकों प्राचीन अवशेष प्राप्त हुए हैं, जो प्राचीनता की याद दिलाते हैं। भगवान महावीर से उपदेश पाकर यहाँ के राजा शिवराज ने जैन धर्म का अनुयायी बनकर दीक्षा अंगीकार की । उसने भगवान की स्मृति में एक स्तूप का भी निर्माण करवाया था ।
सम्राट अशोक के पौत्र राजा संप्रति द्वारा यहाँ अनेकों मन्दिर बनवाने का उल्लेख है । वि. सं. 386 वर्ष पूर्व आचार्य श्री यक्षदेवसूरिजी, 247 वर्ष पूर्व आचार्य श्री सिद्धसूरिजी, वि. सं. 199 में श्री रत्नप्रभसूरिजी (चतुर्थ), वि. सं. 235 के लगभग आचार्य कक्कसूरिजी (चतुर्थ) आदि अनेकों प्रकाण्ड विद्वान आचार्यगण संघ सहित यहाँ यात्रार्थ पधारे थे । ___ "विविध तीर्थ-कल्प” के रचयिता आचार्य श्री जिनप्रभसूरिजी वि. सं. 1335 के लगभग दिल्ली से विशाल जन समुदाय सहित संघ के साथ यहाँ यात्रार्थ पधारे। उस समय यहाँ श्री शान्तिनाथ भगवान, श्री कुंथुनाथ भगवान, श्री अर्हनाथ भगवान व श्री मल्लिनाथ भगवान इन चार तीर्थंकरों के चार मन्दिर व एक श्री अम्बीका देवी का मन्दिर होने का उल्लेख किया है । उस समय हस्तिनापुर शहर गंगा नदी के तट पर था ।
विक्रम की सतरहवीं सदी में श्री विजयसागरजी यात्रार्थ पधारे तब 5 स्तूप व 5 जिन प्रतिमाएँ होने का उल्लेख है । वि. सं. 1627 में खरतरगच्छाचार्य श्री जिनचन्द्रसूरिजी यात्रार्थ पधारे, तब यहाँ 4 स्तूपों का वर्णन किया है ।
प्राचीन काल से समय-समय पर अनेकों प्रकाण्ड विद्वान दिगम्बर आचार्यगण भी यहाँ यात्रार्थ पधारने का उल्लेख है ।
इस श्वेताम्बर मन्दिर का हाल में पुनः जीर्णोद्धार होकर वि. सं. 2021 मिगसर शुक्ला 10 को आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय समुद्रसुरिजी की निश्रा में प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी । इस दिगम्बर मन्दिर की प्रतिष्ठा वि. सं. 1863 में होने का उल्लेख है ।
श्री शान्तिनाथ प्रभु जिनालय (श्वे.)-हस्तिनापुर
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