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श्री देवगढ़ तीर्थ
तीर्थाधिराज * श्री शान्तिनाथ भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा में लगभग 375 सें. मी. (दि. मन्दिर)।
तीर्थ स्थल बेतवा नदी के किनारे देवगढ़ गाँव से 27 कि. मी. दूर पहाड़ी पर ।
प्राचीनता * कहा जाता है हजारो वर्ष पहले यहाँ शवर जाति का अधिपत्य था । पश्चात् पान्डवों, सहरी गोन्ड, गुप्तवंश, देववंश, चन्देलवंश, मुगल, बुन्देल वंश, तत्पश्चात् सिन्धिया नरेश व अन्त में अंग्रेजों का राज्य रहा ।
गुर्जर नरेश भोजदेव के शासनकालीन विक्रम सं. 919 के शिलालेख से पता चलता है कि पहले इस स्थान का नाम लुअच्छगिरि था । बारहवीं सदी में चन्देलवंशी राजा कीर्तिवर्मा के मंत्री वत्सराज ने इस स्थान पर एक नवीन दुर्ग का निर्माण करवाया व अपने स्वामी के नाम पर यहाँ का नाम कीर्तिगिरि रखा । तत्पश्चात् संभवतः 12 वीं या 13 वीं शताब्दी में इस स्थान का नाम देवगढ़ पड़ा होगा । यह नाम पड़ने के अनेकों कारण बताये जाते हैं । उनमें यह भी एक कारण बताया जाता है कि इस स्थान की रचना देवों ने की थी, इसलिए देवगढ़ पड़ा । यहाँ असंख्य विभिन्न कलापूर्ण देव मूर्तियाँ हैं । अतः देवगढ़ नाम पड़ने का प्रचलित कारण यह भी हो सकता है । यहाँ शिलालेखों, स्तम्भों आदि पर आठवीं सदी से पन्द्रहवीं सदी तक के लेख उत्कीर्ण हैं । परन्तु कलाकृतियों के अवलोकन से यहाँ की कुछ प्रतिमाएँ गुप्त-काल से भी पुरानी प्रतीत होती है ।
विशिष्टता * यह तीर्थ-क्षेत्र प्राचीन तो है ही, मुख्यतः इसकी विशेषता विभिन्न शैली की प्राचीन मूर्ति-कला है। जिन प्रतिमाओं, यक्ष यक्षिणियों, मण्डपों, स्तम्भों, शिलापट्टों में उत्कीर्ण भारतीय शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना यहाँ प्रस्तुत है । पहाड़ पर 31 बड़े मन्दिर हैं जिनमें विशिष्ठ कला के नमूने नजर आते हैं। इस मन्दिर में एक ज्ञानशिलालेख है, जो 18 लिपियों में उत्कीर्ण हैं ।
भगवान आदिनाथ की पुत्री ब्राह्मी ने जिन 18 लिपियों का ज्ञान पाया था, वे सभी लिपियाँ इसमें हैं।
श्री शान्तिनाथ भगवान (दि.) - देवगढ़
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