________________
स्वतः खुल जाते थे । वार्षिक मेले के दिन एक बाघ यहाँ आकर बैठता था व आरती के पश्चात् पुनः चला जाता था-ऐसा 'विविध तीर्थ-कल्प' में उल्लेख है ।
अल्लाउद्दीन खिलजी के समय इस मन्दिर को भी क्षति पहुंची थी । अठारहवीं सदी में पं. विजयसागरजी व श्री सौभाग्यविजयजी ने यहाँ का उल्लेख किया है। __ वर्तमान श्रावस्ती गाँव के निकट सहेतमहेत में खुदाई करते वक्त अनेकों प्राचीन प्रतिमाएँ व शिलालेख प्राप्त हुए हैं, जो लखनऊ व मथुरा म्यूजियम में रखे गये हैं । महेत किले के निकट एक प्राचीन मन्दिर है, जो पुरातत्व-विभाग के अधीनस्थ है । इस स्थान को भगवान श्री संभवनाथ का जन्मस्थान बताया जाता है।
सहेतमहेत के पुराने खण्डहर आज भी प्राचीनता की याद दिलाते हैं । आज तो यहाँ सिर्फ ये दो मन्दिर विद्यमान है ।
विशिष्टता * वर्तमान चौबीसी के तीसरे तीर्थंकर श्री सम्भवनाथ भगवान के च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान कल्याणकों से यह भूमि पावन बनी है।
श्री शान्तिनाथ भगवान का भी यहाँ पदार्पण हुआ था। भगवान श्री महावीर ने अनेकों बार इस भूमि में विचरण किया व चातुर्मास किये । प्रभु के कई बार समवसरण यहाँ रचे गये, जिससे अनेक भव्य आत्माओं ने अपनी आत्मा को पवित्र बनाया । श्री पार्श्वनाथ भगवान के संतानीय श्री केशीमुनि व प्रभुवीर के प्रथम गणधर श्री गोतम स्वामीजी का प्रथम मिलन यहीं हुआ था । प्रभुवीर के जमाई (भाणेज) श्री जमाली यहीं के थे, यहीं पर प्रभु के पास दीक्षा ग्रहण की थी । अन्त में यहाँ के कोष्टक उद्यान में रहकर विपरीत प्रचार प्रारम्भ किया था । गोशाले ने यहीं पर प्रभु के ऊपर तेजोलेश्या छोड़ी थी ।
मुनि श्री कपिल भी यहीं से मोक्ष सिधारे है । पराक्रमी जैन राजा प्रसेनजित, सुहृद्ध्वज आदि यहाँ हुए जिन्होंने धर्म-प्रभावना के अनेकों कार्य किये, जो उल्लेखनीय हैं ।
इस प्रकार इस पावन भूमि का कण-कण प्रभु के चरण स्पर्श से पवित्र बना है, जो वन्दनीय है ।
श्री संभवनाथ जिनालय (दि.) श्रावस्ती
125