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प्रभु के साथ कच्छ महाकच्छ आदि राजाओं ने भी दीक्षा उक्त समय यहाँ घाघरा व सरयू नदी के तट पर अंगीकार की । दीक्षा के बाद प्रभु का अनेकों बार यहाँ "स्वर्गद्वार" रहने व उस स्थान पर जिन मन्दिर में पदार्पण हुआ व समवसरण भी रचा गया । (दिगम्बर रत्नों से निर्मित गोखलों में चक्रेश्वरी देवी व गोमुख मान्यतानुसार श्री ऋषभ देव भगवान का जन्म-कल्याणक यक्ष की प्रतिमाएँ रहने का उल्लेख किया है । इसके चैत्र कृष्णा नवमी को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में यहाँ हुआ अतिरिक्त यहाँ श्री नाभिराज मन्दिर, पार्श्व वाटिका एवं माना जाता है व दीक्षा चैत्र कृष्णा नवमी को उत्तराषाढ़ा सीताकुण्ड आदि भी थे-ऐसा उल्लेख है । नक्षत्र में पुरिमताल (प्रयाग) में हुई मानी जाती है । बारहवीं सदी में यहाँ से तीन प्रतिमाएँ शेरीशा ले
इनके पश्चात् श्री अजितनाथ भगवान, श्री अभिनन्दन जाये जाने का उल्लेख है । भगवान, श्री सुमतिनाथ भगवान, श्री अनन्तनाथ भगवान वर्तमान में स्थित दिगम्बर व श्वेताम्बर जिनालयों में के भी च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान कल्याणक भी प्रतिमाएँ ग्यारहवीं सदी के बाद की नजर आती हैं। यहाँ हुए ।
मन्दिरों का अनेकों बार जीर्णोद्धार हुआ प्रतीत होता है। भरत चक्रवर्ती द्वारा यहाँ चौबीस तीर्थंकरों की हाल ही में इस श्वे. मन्दिर का पुनः जीर्णोद्धार होकर प्रतिमाएँ व स्तूप चारों दिशाओं में निर्मित करवाने का आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय नित्यानन्दसुरिजी की उल्लेख आता है । उसके पश्चात् भी अनेकों मन्दिर बने ___निश्रा में पुनः प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । होगें । भगवान महावीर ने भी इस पावन भूमि में विशिष्टता * युगादिदेव श्री आदीश्वर भगवान विहार किया था । चौदहवीं शताब्दी में आचार्य श्री
का च्यवन, जन्म, दीक्षा एवं श्री अजितनाथ भगवान, जिनप्रभसूरीश्वरजी द्वारा रचित "विविध तीर्थ कल्प" में श्री अभिनन्दन भगवान, श्री सुमतिनाथ भगवान व श्री
श्री अजितनाथ भगवान (श्वे.) - मन्दिर अयोध्या
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