________________
श्री रत्नपुरी तीर्थ
तीर्थाधिराज * श्री धर्मनाथ भगवान, चरणपादुकाएँ, श्याम वर्ण, (श्वे. मन्दिर ) ।
2. श्री धर्मनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 90 सें. मी. (दि. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल * रोनाही गाँव में ।
प्राचीनता इस तीर्थ की प्राचीनता श्री धर्मनाथ भगवान से प्रारम्भ होती है। प्रभु के च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान कल्याणक यहाँ हुए । आज का रोनाही गाँव उस समय रत्नपुर नाम का विराट नगर
था ।
पुष्य नक्षत्र
वैशाख शुक्ला सप्तमी के शुभ रात्रि को में श्री दृढ़रथ का जीव यहाँ के राजा भानु की रानी सुव्रता की कुक्षी में प्रविष्ट हुआ उसी क्षण माता ने तीर्थंकर - जन्म - सूचक महा स्वप्न देखे । इन्द्रादि देवों ने प्रभु का च्यवन कल्याणक मनाया । गर्भकाल पूर्ण होने पर माघ शुक्ला तीज पुष्य नक्षत्र में वज्र लक्षणयुक्त पुत्र का जन्म हुआ । प्रभु गर्भ में वें तब रानी को धर्म करने का दोहला हुआ था । इसलिए प्रभु का नाम धर्मनाथ रखा । इन्द्रादि देवों व जन साधारण द्वारा जन्म कल्याणक उल्लासपूर्वक मनाया गया । (दिगम्बर मान्यतानुसार जन्म माघ शुक्ला तेरस को हुआ माना जाता हैं ।)
युवावस्था पाने पर पाणिग्रहण किया व पाँच हजार वर्ष राज्य करके एक दिन दीक्षा लेने का निर्णय लिया। प्रभु ने वर्षीदान देकर प्रकांचन उद्यान में जाकर एक हजार राजाओं के साथ माघ शुक्ला तेरस के दिन पुष्य नक्षत्र में दीक्षा ग्रहण की । विहार करते हुए दो वर्ष पश्चात् पुनः उसी उद्यान में पधारे। दधिपर्ण वृक्ष के नीचे ध्यानावस्था में पौष शुक्ला पूर्णीमा के दिन पुष्य नक्षत्र में प्रभु को केवलज्ञान प्राप्त हुआ ।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि धर्मनाथ भगवान की कल्याणक भूमि होने के कारण प्राचीन काल से यहाँ अनेकों मन्दिर बने होंगे व कालक्रम से अनेकों बार उत्थान-पतन हुआ होगा । वि की चौदहवीं सदी में आचार्य श्री जिनप्रभसूरीश्वरजी ने विविध तीर्थ' कल्प में इस तीर्थ का रत्नपुर नाम से उल्लेख किया है ।
श्री धर्मनाथ भगवान (श्वे. ) - रत्नपुरि
CODOOOOOO
श्री धर्मनाथ प्रभु चरण (श्वे.)
रत्नपुरी
आज श्वेताम्बर व दिगम्बर समाज के दो-दो मन्दिर नजर आते हैं । मन्दिर प्राचीन हैं । इस श्वे. मन्दिर का हाल ही पुनः जीर्णोद्धार होकर आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय नित्यानन्दसुरिजी के करकमलों से पुनः प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई ।
विशिष्टता श्री धर्मनाथ भगवान का च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान कल्याणक होने का सौभाग्य इस पावन भूमि को प्राप्त हुआ है। अतः इस पुण्य भूमि का कण-कण पवित्र है ।
117