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________________ (दि. मान्यतानुसार श्री ऋषभसेन को प्रभु का पुत्र बताया है) । श्री आदीश्वर भगवान के बाद अन्य तीर्थंकरों का भी यहाँ पदार्पण हुआ । चरम तीर्थंकर श्री महावीर भगवान भी यहाँ शकटमुख उद्यान में ध्यानावस्थित रहे वे उस समय यहाँ के राजा महाबल थे। प्रभु वीर का भी यहाँ समवसरण रचा गया था । जिस वटवृक्ष के नीचे श्री आदीश्वर भगवान को केवलज्ञान हुआ था, वहाँ पर प्रभु की चरण पादुकाओं के रहने का व वि. सं. 1556 में पं. हँससोमविजयजी द्वारा दर्शनार्थ वहाँ जाने का तीर्थ माला में उल्लेख है। चौदहवीं सदी में आचार्य श्री जिनप्रभसूरीश्वरजी द्वारा रचित "विविध तीर्थ कल्प" में यहाँ श्री शीतलनाथ भगवान का मन्दिर रहने का भी उल्लेख है । बादशाह अकबर के समय इस नगरी का नाम इलाहाबाद में परिवर्तित हुआ होगा । आज यहाँ एक श्वेताम्बर व एक दिगम्बर मन्दिर हैं। त्रिवेणी संगम के निकट किले में एक वटवृक्ष है । कहा जाता है कि यही उस प्राचीन वटवृक्ष का अंश है, जहाँ प्रभु ने केवलज्ञान प्राप्त किया था । इस वृक्ष के नीचे प्रभु की चरण पादुकाएँ स्थापित थीं, जो अब नहीं हैं । विशिष्टता इस तीर्थ की विशेषता का तो जितना वर्णन करें कम है । हमारे युगादिदेव प्रथम तीर्थंकर श्री आदीश्वर भगवान को केवलज्ञान यहीं प्राप्त हुआ । अतः इस युग में केवलज्ञानोत्पत्ति का प्रथम स्थान होने का सौभाग्य इसी पावन भूमि को प्राप्त हुआ । इन्द्रादि देवों द्वारा प्रथम समवसरण की रचना होने का सौभाग्य भी इसी पुण्यस्थली को मिला । माता मरुदेवी भी इसी स्थान पर केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष सिधारी । इस अवसर्पिणीकाल में श्री मरूदेवी माता ने इसी पवित्र भूमि में मुक्ति पाकर सर्व प्रथम मोक्ष द्वार खोला । श्री आदीश्वर भगवान ने प्रथम देशनाँ, चतुर्विध संघ की स्थापना, गणधरपद प्रदान, द्वादशगी रचना, जैनधर्म सिद्धान्त, नियम-संयम, व्रत- महाव्रत आदि का मंगलाचरण इसी परम पवित्र भूमि में किया । इस श्री आदिनाथ भगवान (श्वे.) - पुरिमताल प्रकार तीर्थ की स्थापना होने पर प्रभु के पास रहने वाले "गोमुख" नाम के यक्ष अधिष्ठायक व प्रतिचक्रा नाम की देवी शासनदेवी बनी, जिसे चक्रेश्वरी देवी कहते हैं । श्री आदीश्वर भगवान के पश्चात् कई तीर्थंकरों का यहाँ पदार्पण हुआ । चरम तीर्थकर श्री महावीर भगवान का भी यहाँ समवसरण रचा गया था । भारत की पवित्र नदियों में गंगा, यमुना व सरस्वती का यहीं पर संगम होता है, जिसे त्रिवेणी संगम कहते हैं। इस तीर्थ स्थल का कण-कण वन्दनीय है । महाभारत व रामायण में भी इस प्रयाग नगरी का वर्णन आता है । भरद्वाज मुनि का यहाँ आश्रम था । मय नाम के शिल्पी ने पाण्डवों को मारने के लिये लाक्ष- गृह का निर्माण यहीं किया था । 115
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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