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एक दिन पार्श्वकुमार को दीक्षा लेने की भावना जाग्रत हुई । प्रभु ने वर्षीदान देकर यहाँ आश्रमपद नामक उद्यान में पौष कृष्णा ग्यारस के दिन अनुराधा नक्षत्र में तीन सौ राजाओं के साथ दीक्षा अंगीकार की। विहार करते हुए प्रभु पुनः यहाँ आये व उसी आश्रमपद उद्यानमें धातकी वृक्ष के नीचे कायोत्सर्ग ध्यान में रहें। दीक्षा के 84 दिनों के पश्चात् घातिया कर्मों का नाश होने पर चैत्र कृष्णा चतुर्थी के दिन विशाखा नक्षत्र में प्रभु को केवलज्ञान प्राप्त हुआ । इन्द्रादिदेवों द्वारा समवसरण की रचना की गई ।
उस समय हस्तिनापुर के राजा स्वयंभू समवसरण में उपस्थित थे, उन्होंने प्रभु के पास दीक्षा ग्रहण की व बाद में वे प्रभु के प्रथम गणधर बनकर आर्यदत्त नाम से प्रचलित हुए । प्रभु के माता पिता व भार्या ने भी दीक्षा ग्रहण की ।।
इस प्रकार पार्श्वप्रभु के चार कल्याणक इस पावन भूमि में हुए हैं । (दिगम्बर मान्यतानुसार प्रभु का च्यवन वैशाख कृष्णा द्वितीया को, जन्म पौष कृष्णा ग्यारस को हुआ बताया है एवं कन्नोज के नरेश रविकीर्ति की पुत्री प्रभवाती के साथ विवाह के लिए पार्श्व कुमार से निवेदन किया गया था परन्तु विवाह नहीं हुआ ऐसा मत है । रविकीर्ति पार्श्वकुमार के मामा बताये जाते हैं)।
भगवान महावीर के समय यह मल्लजाति के राजाओं की राजधानी थी । महाराज श्रेणिक को यह शहर दहेज में दिया गया था ऐसा उल्लेख है । भगवान बुद्ध यहाँ आये तब पार्श्वनाथ भगवान के अनेकों शिष्यों श्री पार्श्वनाथ भगवान वर्तमान मूलनायक (श्वे.) से उनकी यहाँ भेंट हुई थी-ऐसा उल्लेख है । प्रागैतिहासिक काल से यहाँ अनेकों मन्दिर बने । परन्तु कालक्रम से अनेकों बार जीर्ण हुए व पुनः बने।
भावात्मक है । यही प्रतिमा प्राचीन मूलनायक बताई स्थानीय भारतीय कलाभवन में पुरातत्व सम्बधी बहुमूल्य जाती है । हाल ही में पुनः जीर्णोद्धार होकर वि. सं. सामग्री संग्रहीत हैं, जो यहाँ की प्राचीनता को प्रमाणित 2057 में प. पू आचार्य भगवंत श्री राजयशसूरीश्वरजी करती है । चौदहवीं सदी में आचार्य जिनप्रभसूरीश्वरजी म. सा. के सुहस्ते पुनः प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । उक्त द्वारा रचित विविध तीर्थ कल्प में यहाँ पार्श्वनाथ मन्दिर उल्लेखित प्राचीन मूलनायक प्रभु प्रतिमा पुनः यहीं के पास तालाब रहने का उल्लेख किसा है । सम्भवतः
सभा मण्डप में विराजमान करवाई गई । वह मन्दिर यह भेलुपुर का मन्दिर ही हो । जीर्णोद्धार
विशिष्टता वर्तमान काल के प्रकट प्रभावी, के समय श्वेताम्बर मन्दिर में प्राचीन प्रतिमा के स्थान साक्षात्कार, भक्तों के संकट हरनार तेईसवें तीर्थंकर श्री पर दूसरी प्रतिमा प्रतिष्ठत की गई होगी । प्राचीन __पार्श्वनाथ भगवान के चार कल्याणक च्यवन, जन्म, प्रतिमा भी इसी मन्दिर की भमती में विराजमान दीक्षा व केवलज्ञान से यह भूमि पावन बनी है । जिस करवाई गई है जो अति ही सुन्दर, कलात्मक व भूमि को प्रभु के जन्म से लेकर केवलज्ञान तक होने
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