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देवानांप्रिय भी किया है । देवानाँप्रिय जैन परम्परा का शब्द है । वर्तमान में यह स्तूप पुरातत्व विभाग की देखरेख में है व संभवतः अशोक सम्राट द्वारा निर्माणित हुआ होगा ऐसा लिखा है । इस संभावना पर संशोधन आवश्यक है ताकि प्रमाणिकता का पता लग सके । __यहाँ भूगर्भ से प्राप्त शिलालेखों में भी जैन धर्म सम्बन्धी अनेकों लेख उत्कीर्ण हैं । यहाँ के मग उद्यान की प्राचीनता के विषय में भी खोज की जाय तो कुछ इतिहास प्रकट में आ सकता है ।
पाँचवीं शताब्दी में चीनी यात्री फाहियान ने इस स्थान का वर्णन किया है । सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री हुएनसाँग ने भी वर्णन किया है ।
ग्यारहवीं सदी में यह स्थान मोहमद गज़नी के आधीन आया । तत्पश्चात् कन्नौज के राजा गोविन्दचन्द्र की रानी कुमारदेवी ने यहाँ एक धर्मचक्र जिन विहार बनाया था । सं. 1194 में शहाबुद्दीन गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ने यहाँ के मन्दिरों को क्षति पहुँचाई तब दो विशाल स्तूपें बची थीं ऐसा उल्लेख है । अभी यहाँ सिर्फ एक श्वेताम्बर मन्दिर, एक दिगम्बर मन्दिर, एक स्तूप व एक बौद्ध मन्दिर हैं ।
विशिष्टता * वर्तमान चौबीसी के ग्यारहवें तीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथ भगवान के च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान कल्याणक होने का सौभाग्य इस पावन भूमि को प्राप्त हुआ है ।
यहाँ का विशाल व विचित्र प्राचीन कलात्मक स्तूप दर्शनीय है । भारत सरकार ने इस स्तंभ की सिंहत्रयी को राज्यचिह्न के रूप में मान्य करके व धर्मचक्र को राष्ट्र ध्वज पर अंकित करके यहाँ का ही नहीं श्रमण संस्कृति का गौरव बढ़ाया है ।
बौद्ध मान्यतानुसार बुद्ध भगवान ने सर्व प्रथम अपने पंचवर्गीय शिष्यों को यहीं पर उपदेश दिया था। बौद्ध ग्रन्थों में इसका नाम ऋषिपतन और मृगादान आता है ।
अन्य मन्दिर * वर्तमान में इनके अतिरिक्त अन्य कोई मन्दिर नहीं हैं ।
स्तूप की विचित्र कला का जितना वर्णन करें, कम हैं।
मार्ग दर्शन * बनारस छावनी स्टेशन से यह स्थान 8 कि. मी. है, जहाँ से बस, टेक्सी की सुविध ॥ है । सारनाथ चौराहे के पास दिगम्बर मन्दिर है। श्वेताम्बर मन्दिर सारनाथ से 12 कि. मी. दूर
श्री श्रेयांसनाथ जिनालय (श्वे.) - सिंहपुरी
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