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________________ श्री सिहपुरी तीर्थ तीर्थाधिराज * 1. श्री श्रेयांसनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 30 सें. मी.। (श्वेताम्बर मन्दिर) । 2. श्री श्रेयांसनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 75 सें. मी.। (दिगम्बर मन्दिर)। तीर्थ स्थल * हीरावणपुर गाँव में श्वेताम्बर मन्दिर व सारनाथ चौराहे पर दिगम्बर मन्दिर । प्राचीनता * इस क्षेत्र का इतिहास वर्तमान चौबीसी के ग्यारहवें तीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथ भगवान के समय से प्रारम्भ होता है । प्रागैतिहासिक काल में, प्रबल योग से जब नलिनगुल्म का जीव पूर्व के दो भव पूर्ण करके यहाँ के तात्कालिन राजा विष्णु की रानी, विष्णुदेवी की कुक्षि में प्रविष्ट हुआ उसी समय रानी विष्णु देवी ने तीर्थंकर जन्म-सूचक महा स्वप्न देखे । गर्भ काल की अवधि पूर्ण होने पर विष्णुमाता की कुक्षि से गेण्डे के चिन्हयुक्त पुत्र-रत्न का जन्म हुआ । दि. मान्यतानुसार माता का नाम वेणुदेवी था ।) इन्द्रादिदेवों ने जन्मकल्याणक महोत्सव उल्लासपूर्वक मनाया । राज-दरबार में भी बधाइयाँ बँटने लगी । पुत्र का नाम श्रेयांसकुमार रखा था । __यौवनावस्था पाने पर शादी की गई व राज्य भार संभाला । वर्षों पश्चात् एक दिन प्रभु ने दीक्षा लेने का निर्णय लिया व वर्षीदान देकर यहाँ के सहसाम्रवन में दीक्षा ग्रहण की । विहार करते हुए एक माह पश्चात् प्रभु पुनः इसी वन में आकर तंदुक वृक्ष के नीचे ध्यानावस्था में रहे । घातिया कर्मों का नाश करके माघ कृष्णा तीज के दिन प्रभु ने केवलज्ञान प्राप्त किया। (दि. मान्यतानुसार माघ शुक्ला पूर्णिमा को केवलज्ञान हुआ ।) इस प्रकार प्रभु के चार कल्याणक होने का सौभाग्य इस पावन भूमि को प्राप्त हुआ | आज यह स्थान सारनाथ के नाम से प्रसिद्ध है । श्रेयांसनाथ का अपभ्रंश नाम ही सारनाथ होने का अनुमान लगाया जाता है । क्योंकि सारनाथ नाम कैसे पड़ा इसका कोई इतिहास उपलब्ध नहीं । यहाँ पर 103 फुट उत्तुंग प्राचीन कलात्मक अष्टकोण श्री श्रेयांसनाथ भगवान (श्वे.) - सिंहपुरी स्तूप हैं, जो लगभग 2200 वर्ष प्राचीन माना जाता है। यह स्तूप देवानां प्रिय, प्रियदर्शी राजा द्वारा निर्माणित हुआ बताया जाता है । जैन मान्यता के अनुसार सम्राट अशोक के पौत्र श्री सम्प्रति राजा द्वारा श्री श्रेयांसनाथ भगवान की कल्याणक भूमि पर उनकी स्मृति में निर्माणित हुआ है । क्योंकि राजा सम्प्रति ने अपने लिए प्रियदर्शी शब्द का सर्वत्र प्रयोग किया है । कहीं-कहीं
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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