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श्री चन्द्रपुरी तीर्थ
तीर्थाधिराज * 1. श्री चन्द्रप्रभ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 45 सें. मी.। (श्वेताम्बर मन्दिर) ।
2. श्री चन्द्रप्रभ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 45 सें. मी.। (दिगम्बर मन्दिर) । ____ तीर्थ स्थल * चन्द्रावती गाँव के पास गंगा नदी के तट पर । (इसे चन्द्रोटी भी कहते हैं) ।
प्राचीनता * इस पावन तीर्थ का इतिहास आठवें तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभ भगवान से प्रारम्भ होता है ।
किसी समय श्री महासेन नाम के प्रतापी राजा यहाँ राज्य करते थे । उनके भाग्योदय से रानी लक्ष्मीमती ने एक दिन तीर्थंकर-जन्म-सूचक महास्वप्न देखे । उसी क्षण पद्मनाभ का जीव पूर्व के दो भव पूर्ण करके माता की कुक्षि में प्रविष्ट हुआ ।
गर्भ के दिन पूर्ण होने पर पौष कृष्ण ग्यारस अनुराधा नक्षत्र में पुत्र-रत्न का जन्म हुआ । माता को गर्भ काल में चन्द्र-पान की इच्छा हुई थी इससे प्रभु का नाम चन्द्रप्रभ रखा गया । इन्द्रादिदेवों ने जन्म कल्याणक महोत्सव अति ही उल्लासपूर्वक मनाया ।
यौवनावस्था पाने पर शादी हुई व कई वर्षों तक राज्य सुख भोगते हुए एक वक्त प्रभु ने दीक्षा लेने का निर्णय लिया । अतः प्रभु ने वर्षीदान देकर पौष कृष्णा तेरस अनुराधा नक्षत्र में सहसाम्रवन में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा ग्रहण की । प्रभु विहार करते हुए तीन माह पश्चात् पुनः यहाँ सहसाम्रवन में पधारे। यहाँ के पुन्नाग वृक्ष के नीचे कायोत्सर्ग ध्यान में रहकर फाल्गुन कृष्ण सप्तमी के दिन अनुराधा नक्षत्र में केवलज्ञान प्राप्त किया । इन्द्रादिदेवों द्वारा समवसरण की रचना की गई ।
श्री चन्द्रप्रभ भगवान (श्वे.) - चन्द्रपुरी