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मो सम कौन कुटिल खल कामी। जिन तनु दियो ताहि बिसरायो ऐसो निमकहरामी ॥ भरि भरि उदर विषय को धावौं,
जैसे सूकर ग्रामी। हरिजन छाँड़ हरि-बिमुखनकी
निसि-दिन करत गुलामी ॥१॥ पापी कौन बडो है मोतें..
सब पतितन में नामी। सूर पतित को ठौर कहाँ है,
सुनिये श्रीपति स्वामी ॥२॥
प्रभु ! मोरे अवगुण चित्त न धरो। सम-दरशी है नाम तिहारो, चाहे तो पार करो ॥ एक नदिया एक नार कहावत मैलो ही नीर भरो । जब मिल करके एक बरन भये सुरसरि नाम पर्यो ॥ इक लोह पूजा में राखत, इक घर बधिक पर्यो । पारस गुण अवगुण नहिं चितवत, कंचन करत खरो ॥
यह माया भ्रम-जाल कहावत सूरदास सगरो । अबकी बेर मोहिं पार उतारो, नहि, प्रन जात टरो ॥