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________________ सुचरित्रम् रही है वह मुग्धकारी सुगंध। चूल्हे पर जो हंडियां चढ़ी है, वह कोई सामान्य हंडियां नहीं, एक रत्नजटित हंडियां है जिसके तरल प्रकाश से पूरी झोंपड़ी जगमगा रही है। वह दृश्य उन्हें अनुपम लगा। किन्तु उन्हें यह समझने में भी देर नहीं लगी कि वह वृद्धा उन दोनों विरल पदार्थों के मूल्य से अनजान है। यह स्पष्ट था कि वह अपने अज्ञान के कारण ही चन्दन और रत्नों का दुरुपयोग कर रही थी। उन्होंने सरलता के साथ वृद्धा को पूछा-'आपको यह लकड़ी और हंडिया कहां मिली?' वह बोली-'बेटा! घर में कुछ नहीं बचा सो जंगल में गई थी जहां यह थोड़ी-सी सूखी लकड़ी ही मिली और यह हंडियां भी। लकड़ी ज्यादा नही थी सो बाजार में बेचने के लिये नहीं ले गई, घर में ही जलाने को रख ली। हंडियां ठीक लगी सो इसी में यह थोड़ा सा अन्न उबालने को रख दिया है।' सारी राम कहानी सुनकर सेठजी ने उस अज्ञानी वृद्धा को रहस्य की बात बताई-'मां जी!, यह लकड़ी चन्दन की है, साधारण नहीं और इसकी आपको सौ स्वर्णमुद्राएं मिल सकती है। लेकिन यह हंडियां तो रत्नों की है जिसका मोल करोड़ों स्वर्णमुद्राएं हैं। इनको पाकर आप गरीब नहीं रही, अरबपति हो गई हैं।' वृद्धा लकड़हारिन को करोड़ों-अरबों का हिसाब तो समझ में नहीं आया, लेकिन इतना वह समझ गई कि उसके पास ये दोनों वस्तुएं बहुत कीमती हैं। उसने सेठजी का आभार प्रकट किया और उन दोनों वस्तुओं का दुरुपयोग उसी क्षण रोक दिया। आप अपने मन को टटोलिये कि आप क्या हैं अज्ञानी लकड़हारिन या विवेकवान सेठ जी? अब भी आप न समझे हों और सोचने लगें कि हमारे पास कौनसी रत्नों की हंडियां और बावना चन्दन पड़ा हुआ है कि हमसे ऐसा पूछा जाए? लेकिन आपको जो प्राप्त है वह तो रत्नों की हंडिया से भी कई गुण मूल्यवान है बल्कि अमूल्य है। अब भी आपको समझ में न आया हो तो मैं बता दूं कि आपकी वह अमूल्य प्राप्ति है आपका मानव तन और मानव जीवन। अब आप पहले प्रश्न का उत्तर देने की स्थिति में हैं न? तो बताइये कि आप वृद्धा लकड़हारिन की तरह व्यवहार कर रहे हैं या विवेकवान सेठ जी जैसा आपको ज्ञान है? ____ अभिप्राय यह है कि यह मानव तन और मानव जीवन अमूल्य है और इसका यदि सदुपयोग किया जाए तो कल्पनातीत उपकार हो सकता है। दुरुपयोग की स्थिति में तो न सिर्फ इस अमूल्य निधि का सर्वनाश होता है बल्कि इसको हथियार बना कर संसार के सर्वनाश की राह भी बनाई जा सकती है। आवश्यकता है इस अमूल्य प्राप्ति का महत्त्व जानने की और तदनुसार मानव जीवन को सत्पथ पर लगाने की, ताकि यह मानव-तन स्व-पर कल्याण का प्रखर साधन बन जाए। मानव तन एवं जीवन की सार्थकता है मानवता को आत्मसात् करने में: मानव तन और जीवन स्वयं में सार्थक नहीं, क्योंकि इनकी सार्थकता इस सत्य में निहित है कि मानव अपने ज्ञान एवं आचरण से मानवता को आत्मसात करे। यदि मानव होकर मानवता की वत्ति और प्रवृत्ति नहीं है तो उसे शुद्ध अर्थ में मानव कहना भी उचित नहीं। मानवता के अभाव में तन से 36
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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