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________________ युवाओं, उठो और इस विजय अभियान को सबल नेतृत्व दो! और उसके वेग तथा उसके सत्प्रयोग के ऐसे चरित्र नायक सामने आए हैं जिनके जीवन चरित्र को पढ़-जान कर हम आश्चर्य और आनन्द से अभिभूत हो जाते हैं। वह यौवन, जिसने केसरी सिंह के दोनों जबड़ों को अपने कोमल हाथों से फाड़ कर बेडर उसके दांत गिने थे और उसका नाम एक जीवन्त देश का सनातन नाम हो गया। ___ वह यौवन, जो पिता की एक आज्ञा पर लुट गया और खुशी-खुशी राज सिंहासन को त्याग कर पूरे चौदह वर्ष के लिए वन को प्रस्थान कर गया। __ वह यौवन, जिसने युवावस्था के रंगीन दिनों में भोग से योग की दीक्षा ली, साढ़े बारह वर्ष तक कठिन तप का आराधन किया, वीतरागता प्राप्त की और विश्व को अहिंसा का अमर सन्देश दिया। धर्म प्रवर्तन में नई क्रांति की तथा मनुष्य की प्रतिष्ठा को पहली बार देवों से भी ऊपर प्रतिष्ठित की। __वह यौवन, जो संसार के दुःखों से राजकुमार होते हुए भी स्वयं दुःखी हो गया और दुःख निवारण का संकल्प लेकर रात्रि के निबिड़ अंधकार में ज्ञान का प्रकाश फैलाने के लिए महाभिनिष्क्रमण कर गया। वह यौवन, जो इतना केन्द्रस्थ कि अपना लक्ष्य साधने और वेधने के लिए वह न घूमते चक्र को, न पूरी कपड़ों से बनी मछली को, बल्कि सिर्फ उस मछली की आंख को ही कड़ाह के तेल में देखता था। ___वह यौवन, जो प्राणप्रण से जुट गया और राजा होकर भी जंगल-जंगल भटकता रहा, चाहे उसके राजकुमार के मुंह की सूखी रोटी भी वन्य पशु छीन कर ले गया, किन्तु जिसने न अपने राज्य की स्वतंत्रता खोई और न अपने स्वाभिमान की तेजस्विता। वह यौवन, जो स्वाधीनता के विरुद्ध हर चाल से लड़ता रहा और आततायियों के दांत खट्टे करता रहा, अपने गढ़ की अन्तिम विजय तक। ___ वह यौवन, जो भगवा पहिन कर पहली बार भारतीय संस्कृति के संदेश को गुंजाने समन्दर पार चल पड़ा और उसे विश्वभर में गुंजा दिया। __ वह यौवन, जिसने अपने बलिदान के बल पर अहिंसक विधा से पूरे देश के एक-एक जन को .राष्ट्रीय स्वतंत्रता के प्रति सजग एवं आस्थावान बनाया, फिर भी उसे एक हत्यारे की गोली का शिकार होना पड़ा। ___ इस यौवन की गाथाएं अनन्त हैं और इसका वेग अपराजेय। क्या आज वे युवा गण अपार गौरव का अनुभव नहीं करते अपने ऐसे यौवन पर? किन्तु गौरव केवल यौवन का नहीं, उसके सत्प्रयोग का होता है, जिसका विस्तार व्यक्ति से लेकर सम्पूर्ण विश्व तक किया जा सकता है। कारण, उमंग भरा यौवन सब को देता ही देता है-सहयोग, त्याग, बलिदान परन्तु अपने लिए किसी से कुछ मांगता नहीं, लेता नहीं। . ___ आज के युवक और युवतियों, एक पल रुकिए और सोचिए कि क्या वर्तमान में आपके यौवन का इस रूप से अस्तित्व है? क्या आपके सम्पर्क में आने वाले महसूस करते हैं कि आपके यौवन में कुछ ऐसा हितावह तत्त्व है जो असर डालता है किसी गिरे हुए को ऊपर उठाने में या पिछड़ते हुए को 551
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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