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________________ जीवन निरन्तर चलते रहने का नाम चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है मन का विश्वास रगों में साहस भरता है . चढ़ कर गिरना, गिर कर चढ़ना न अरवरता है। आरिवर उसकी हिम्मत बेकार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। डुबकियां सिंधु में गोतारवोर लगाता है जा जाकर रवाली हाथ लौट आता है मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में बढ़ता दूना उत्साह इसी हैरानी में। मुट्ठी उसकी रवाली हर बार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। असफलता एक चुनौती है-स्वीकार करो क्या कमी रह गई-देखो और सुधार करो जब तक न सफल हो, नींद चैन की त्यागो तुम संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम। कुछ किए बिना ही जयजयकार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। श्रीमद् भगवत् गीता के निम्न संदेश पर आन्तरिकता से विचार करें और कर्तव्यनिष्ठा की बुद्धि के साथ अपने कर्तव्यों का सही रूप से निर्धारण करें। कर्तव्य निर्धारित हुए तो समझो कि धर्म को धारण कर लिया और धर्म को धारण किया तो चरित्र का वरण हो गया। चरित्र का वरण निरन्तर चलते रहने की शिक्षा देगा और मानव जीवन को सार्थक बना देगा। वह सन्देश है-'हे अर्जुन ! तेरा कर्म करने मात्र में ही अधिकार हो, फल में कभी नहीं और तू कर्मों में फंल की वासना वाला भी मत बन तथा तेरी कर्म न करने में भी प्रीति न हो। आसक्ति को त्याग कर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धि वाला होकर योग में स्थित हुआ कर्मों को कर'-यह समत्व भाव ही योग नाम से कहा जाता है (अध्याय 2 श्लोक 45-48)। 549
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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