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जीवन निरन्तर चलते रहने का नाम
4. दुःख के कारणों को समझें और दुःख को दूरी पर ही रखें : सभी धर्मनायकों ने दुःखों के कारणों पर रोशनी डाली है और जीवन में उनके उन्मूलन का उपदेश दिया है। विचार मर्मज्ञ जैनेन्द्र कुमार जैन ने अपने उपन्यास 'त्याग पत्र' में दुःखोत्पत्ति का मार्मिक विश्लेषण दिया है-'वर्तमान के सत्य और भविष्य में स्वप्न को लोग एकसूत्र में गुंथे हुए एकमेक न देखकर अपने अज्ञान से अपने भीतर जब उन्हें टकरा बैठते हैं तब उत्पन्न होता है विग्रह अर्थात् दुःख। कच्ची पढ़ाई से आशाएं उद्दाम हो जाती हैं और विग्रह बढ़ता है। स्पष्ट है कि विग्रह जितना गहरा, द्वन्द जितना तीव्र, परिस्थितियों तथा आशाओं का अन्तर जितना दुर्लघ्य और 'जो है उससे रूष्ट होकर 'जो चाहिए' उसे पा लेने की आसक्ति जितनी ही अंधी होगी, दुःख उतना ही कष्टकर होगा।' इस विश्लेषण से साफ हो जाता है कि अधिकांश दुःख तो व्यक्ति स्वयं ही अपनी नासमझी से अपने लिए पैदा करता रहता है। अपने कारक होने को तो वह समझता नहीं और अपने दुःखों के लिए हमेशा दूसरों को ही कोसता रहता है। चरित्र निर्माण अभियान के सहभागियों को इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए कि अपने लिए वे अनावश्यक रूप से दुःखों का जंगल न उगावें और न ही अपनी भूल से दूसरों के जीवन में दु:खों के बवंडर चलावें। दुःखों को अपने से हमेशा दूरी पर ही रखें।
5. निराशावादी दृष्टिकोण त्यागें, सदा आशावादी रहें : जीवन के प्रति मात्र निराशावादी दृष्टिकोण न रखें। आशावादी बनने का तथा जीवन में नया उत्साह, प्रेम और विश्वास भरने का नित्य प्रयत्न करते रहें। इससे जिन्दगी रंगीन, आनन्दमय हो जाएगी तथा खुशियों से भर जाएगी। जब भी हम अपना मन जरा सा भी उदास या उखड़ा हुआ पावें तो संगीत की मधुरता में खो जावें। अपने पसंदीदा गीतों व भजनों में तल्लीनता से अपूर्व शान्ति मिलेगी। सच, आप अपने उदासी भरे मन के किसी कोने में खुशी की गुदगुदाहट सी पाएंगे। संगीत जीवन के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है, जो मन की उदासी मिटाने का श्रेष्ठ समार्धान है। कहीं ऐसा तो नहीं कि आप हमेशा अपनी जिन्दगी में गिलेशिकवे ही करते रहे हों और अब आदत से मजबूर हो गए हैं। निराश और असन्तुष्ट व्यक्ति हमेशा असंतोष ही जाहिर करता है और निराशावादी बना रहता है। उसका सोच भी नकारात्मक हो जाता है। इस आदत से मजबूर व्यक्ति को स्वयं की खुशियों की भी दस्तक सुनाई नहीं देती है, फिर वह परिवार आदि की दस्तक को क्या समझें? अगर परिवार का कोई अन्य व्यक्ति उसकी दस्तक को सुनना चाहे तो वह उसे सुनने भी नहीं देता यानी न स्वयं खुश, न दूसरों से खुश और दूसरों की खुशी से वह अपना सरोकार ही नहीं बनाता है। मतलब यह हुआ कि ऐसे व्यक्ति न खुद खुश रहेंगे और न दूसरों को खुश रहने देंगे। वे अगर अपने आपको आशावादी बना लें और थोड़ी सूझबूझ तथा धैर्य से काम लें तो वे न सिर्फ दूसरों को, बल्कि स्वयं को भी भरपूर खुशियां दे सकते हैं। जीवन में निराशावादी दृष्टिकोण रखना अपने ही हाथों जीवन की जीत को हार में बदलना है।
इसलिए जिन्दगी के लिए आखिर में पछताना न पड़े-इसके लिए जिन्दगी को भरपूर जीओजिन्दादिली से जीओ और अपने व दूसरों के लिए अपनी जिन्दगी को सर्व सहयोगात्मक उपकरण बनाओ। जिन्दगी की लय जितनी मधुर होगी, चारों ओर खुशियां ही खुशियां बिखरेगी। जिन्दगी के बारे में कुछ रचनाकारों की ये रचनात्मक बानगियाँ जरूर देखिए और समझिए
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