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________________ सुचरित्रम् अपमान की अहं को ठेस हर कदम लगे अपमान को जो पी जाए जीवन उसी का नाम। माचिस निकाली आग लगा दी जहां चाहे लपटों को जो बुझा दे जीवन उसी का नाम। कहीं क्रोध कहीं लोभ, घृणा का कहीं तांडव दीया प्यार का जला दे जीवन उसी का नाम। मन चाहों को सहारा दे दिया तो क्या किया? अनचाहों को संभाल लें जीवन उसी का नाम। सन्देह के भंवर में आज हम उलझा गए विश्वास को जगा दें जीवन उसी का नाम। सूरज की धूप में झुलस रहे पथिक के प्राण जलतों को ठंडी छांव दें जीवन उसी का नाम। स्वार्थ के लिए जी लिए,स्वार्थ के लिए मर मिटे कभी मानवता के लिए मिटें जीवन उसी का नाम। मेरी यह रचना कुछ पुरानी है, किन्तु शायद इसकी प्रासंगिकता आज अधिक है। इस भोगवादी वातावरण ने जीवन के मायने ही बदल दिए हैं और ये मायने भारतीय संस्कृति के कतई अनुरूप नहीं हैं। हमारी संस्कृति भोग पर नहीं, संयम पर बल देती है, स्वार्थ के विरुद्ध त्याग को सर्वाधिक ग्राह्य मानती है और देहसुख को जघन्य बताते हुए आत्मसुख उत्पन्न करने का मार्ग सुझाती है, वहां आज वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से भोगलिप्तता अकल्पनीय रूप से बढ़ी है, त्याग मुश्किल से ही कहीं दिखाई देता है, पर स्वार्थ ही नहीं, स्वार्थ की अंधता भी बेहिसाब हो गई है और आत्म-सुख तो शायद लोग भूल ही गए हैं। चौबीसों घंटे देहसुख की सुविधाएं जुटाने में आज का भूला भटका मानव व्यस्त है। ऐसे में जीवन का रहस्य खोज पाना तो कठिन ही है, किन्तु जीवन का अर्थ समझना भी आसान नहीं। इसी के लिए चरित्र निर्माण का अभियान है। ___ अपने ध्यान को केन्द्रस्थ करें कि जीने का नाम ही जिन्दगी नहीं है, बल्कि खट्टी-मीठी खुशियों की फुहार, थोड़े गिले-शिकवे ही जीवन में नित नया उत्साह और माधुर्य भर देते हैं, तो क्यों न हम सब इन्हीं इन्द्रधनुषी रंगों से अपने जीवन को सजावें। अधिसंख्य लोगों के जीवन में आज जो निराशा, 536
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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