________________
सुचरित्रम्
है-गुणवत्ता का क्षरण, व्यक्ति-पूजा का फैलाव, आन्तरिकता का अभाव, पाखंड, आडम्बर और ढोंग का चलन। यह मैल ऐसा है कि व्यक्ति और व्यवस्था में चरित्रहीनता फैलती है। चरित्रहीनता का निश्चित परिणाम होता है-अध: पतन और सर्वनाश, जैसा कि आज सब ओर दिखाई दे रहा है। इस दशा में चरित्र निर्माण ही ऐसी रामबाण औषधि है, जो सब ओर स्वास्थ्य का संचार कर सकती है। चरित्र निर्माण से नैतिकता जागेगी और नीति शुद्ध बनेगी। नीतिशुद्धता के साथ धार्मिकता का उन्नयन अवश्यंभावी है। धर्म के सुप्रभाव को सर्व व्यापक बनाने के लिए धर्म और नीति की निर्मलता आवश्यक है और यह निर्मलता चरित्र निर्माण एवं चरित्र विकास के बल पर ही उपलब्ध की जा सकती है। ___23. समाज को सदा आदर्शोन्मुख रखो कि मानव सच्चा व सहज रहे : आदर्श ज्योतिस्तंभ के समान होता है, जो प्राप्त कर लेने के नजरिए से दुर्लभ भले हो, किन्तु जिसके प्रकाश में अपना प्रगति पथ तो स्पष्टता से देखा-भाला जा ही सकता है। भले ही आदर्श हमेशा ही बने रहें-प्राप्य न हो सकें, फिर भी समाज के सामने सदा आदर्श बने रहने चाहिए तथा उसकी गति आदर्शों के आलोक में ही चलती रहनी चाहिए। इसका सुपरिणाम यह होगा कि मानव भ्रमित नहीं होगा, विषम नहीं बन सकेगा। कारण, वे आदर्श सदा उसे प्रेरित करेंगे कि वह सच्चा रहे और सहज बने। आदर्शोन्मुखी गति में भटकाव नहीं आता और सतर्कता बनी रहती है। व्यक्ति सामाजिकता में इस तरह रच-बस जाता है कि सर्व-सहयोग की परम्परा निर्मित हो जाती है। इसी अवस्था से आगे बढ़ते हुए चरित्र सम्पन्नता की मंजिल मिलती है जहां आत्म-कल्याण तथा लोककल्याण का सुखद संगम हो जाता है।
24. अहिंसा को आचरण का मूल बनाओ, हिंसा हर जगह हटाओ : अहिंसा के बिना चरित्र का कोई टिकाव नहीं। अहिंसा के फैलाव के लिए हिंसा को हर जगह घटाना और मिटाना होगा। विश्व के सभी भागों में हिंसा को घटाने का दबाव बनाया जाना चाहिए। अपने निजी जीवन में भी उन्मादपूर्ण विलास के लिए हिंसापूर्ण प्रयोगों से तैयार सामग्री का उपयोग बंद होना चाहिए। सामान्य रूप से सम्पत्ति, सत्ता, भूमि आदि के लिए जो हिंसा होती है वह अधिकतर परिग्रह की मूर्छा से उपजती है-इस मुर्छा या तष्णा को घटाना ही होगा। हिंसा को नकारेंगे, तभी अहिंसा को आचरण का मूल बना सकेंगे। ____ 25. समाज को समरस करो, विश्व को परिवार बनाओ : समाज की समरसता की नींव व्यक्ति की चारित्रिक उन्नति पर जमती है। व्यक्ति का चरित्र विकास समाज में चरित्रनिष्ठा को जगाता है और सामाजिक परस्परता का विकास होता है। परस्परता जितनी प्रगाढ़ होती है, समरसता उतनी सरल होती जाती है। समाज की समरसता में जाति, सम्प्रदाय, वर्ग, भाषा आदि के सारे विभेद तिरोहित हो जाते हैं। इतना ही नहीं, सामाजिक समरसता राष्ट्रीय एकता के सूत्र को मजबूत बनाती है
और समरसता की धारा अन्य राष्ट्रों तथा विश्व के पूरे प्रांगण में भी बह चलती है। विश्व को एक परिवार के ढांचे में ढालने वाली यही समरसता होती है। यह सब केवल आदर्श ही नहीं-इसके साकार होने की पूरी संभावना होती है, पर यह होगा और हो सकेगा केवल चरित्र बल के बल पर ही। चरित्र निर्माण वह कुंजी है, जिससे सभी किस्म के ताले खुल सकते हैं।
26. सहकार, सह-अस्तित्व और अनासक्ति को अपनाओ : यह क्रम इस प्रकार बनेगा कि
530