________________
चरित्र गति हेतु ग्राह गुणसूत्र व प्रचार नेटवर्क
प्रशंसनीय न भी हो तो कम से कम निन्दनीय तो कतई न हो। अधिकांशतः ऐसे युवानों का चयन किया जाए, जिनमें कुछ नया करने की तमन्ना तथा समर्पण की भावना हो। ऐसे सहभागी स्वयं के आदर्श से चरित्र निर्माण को प्रभावित करेंगे तो अधिक से अधिक लोगों, युवकों, छात्रों आदि को प्रेरित भी करेंगे कि वे अभियान में सम्मिलित हों। संगठन के छोटे-बड़े सभी घटकों के बीच अच्छा तालमेल और सम्पर्क रहे, पूर्व प्रचार के साथ नए-नए कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहें तथा परीक्षण, पर्यवेक्षण एवं निरीक्षण की प्रणाली सुव्यवस्थित रूप से चलती रहे। सुगठित संगठन को अभियान की आत्मा मानिए और आत्मा जितनी पुष्ट व प्रभावी रहेगी, उतना ही अभियान चरित्र के सर्वत्र उत्थान के नए आयाम खड़े करेगा और नई-नई सफलताएं दिलाएगा।
2. सरल सुबोध साहित्य : देश में समाज के सभी वर्गों को उनकी शिक्षा एवं योग्यता के अनुसार चरित्र निर्माण से संबंधित साहित्य एवं विविध प्रकार की अन्य सामग्री रचित कर वितरित की जाए तथा तदनुसार उन वर्गों में प्रत्यक्ष सम्पर्क से पहले उसे प्रचारित की जाए ताकि वे इस अभियान की उपादेयता के बारे में अपनी धारणा बना सकें तथा समय पर सम्पर्क से उनका सहयोग सहज ही में प्राप्त हो सके। इस साहित्य का सबसे बड़ा अंग तो प्रस्तुत ग्रंथ ही है, किन्तु अल्प शिक्षित वर्गों के लिए उपयुक्त छोटी पुस्तिकाएं, पेम्पलेट, परिपत्र आदि भी तैयार करके वितरित किए जा सकते हैं। जहां तक संभव हो, अभियान की प्रगति से संबंधित महत्त्वपूर्ण संवाद, लेख आदि देश की सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशनार्थ भेजे जाएं। संभव हो तो टी.वी. चैनलों के माध्यम से भी प्रचार को गति दी जा सकती है किन्तु ये सारे कार्य संगठन की केन्द्रीय समिति ही सोचेगी और निर्णय लेगी। ___ 3. प्रवचन, भाषणमालाएं, साक्षात्कार आदि : प्रचार का यह प्रचलित तरीका है कि साधु, संत अपने प्रवचनों या व्याख्यानों के माध्यम से किसी भी श्रेष्ठ अभियान या आन्दोलन का समर्थन कर सकते हैं। चरित्र निर्माण से अधिक श्रेष्ठ अभियान कौनसा हो सकता है? एक व्यक्ति का भी चरित्र निर्मित होता है अथवा विकसित होता है तो उसके हाथों न जाने कितना उपकार संभव है, फिर यह तो समूचे देश की चारित्रिक शक्ति के उत्थान का अभियान है और इसकी सफलता और इसके विस्तार से तो न जाने कितने व्यक्तियों को और उनके जरिए कितने संगठनों तथा वहां की व्यवस्था को चरित्रशीलता की उज्ज्वलता से सुशोभित किया जा सकता है। अतः इसमें कोई विवाद नहीं मानना चाहिए कि चरित्र निर्माण अभियान किसी भी दृष्टि से प्राथमिकता से अपनाने योग्य अभियान नहीं है। इसके बाद गृहस्थों, विभिन्न वर्गों, शिक्षकों, छात्रों आदि के लिए तो चरित्र निर्माण की अपूर्व महत्ता है और इस अभियान को व्यापक रूप से प्रभावोत्पादक बनाने के लिए स्थान-स्थान पर भाषणमालाओं के आयोजन रखे जा सकते हैं कि चरित्र निर्माण से संबंधित एक-एक विषय पर भिन्न-भिन्न विद्वानों के भाषण रखे जाएं जिससे उस विषय के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से रोशनी पड़ सके। ऐसी भाषणमालाओं की श्रृंखला से एक साथ बहुत बड़े क्षेत्र में चरित्र निर्माण के संबंध में जागरूक वातावरण निर्मित हो सकता है। इस संदर्भ में साक्षात्कारों के कार्यक्रम भी रखे जा सकते हैं जिनके द्वारा विशिष्ट व्यक्तियों से रूबरू होकर चरित्र निर्माण की महत्ता पर उनके विचार जाने व प्रचारित किए जा सकते हैं। भिन्न-भिन्न वर्गों आदि से संबंधित विद्वानों के विचारों में जब सामान्य जन को
517