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नई सकारात्मक छवि उभरनी चाहिए धर्म-सम्प्रदायों की
करो।' फिर तो राजकुमार ने माता-पिता को भी मना लिया और भगवान् के समीप दीक्षित हो गए।
पदाघात से क्यों कर विह्वल हुए मेघ मुनि? नवदीक्षित होने से वे सबसे छोटे मुनि थे, इस कारण उनकी पतली सी पथारी को वरिष्ठ सन्तों की लम्बी पंक्ति के एकदम अन्त में निकास द्वार के पास ही में स्थान मिला। कहां तो महल की सुख सज्जा और पलंग पर मोटे रेशमी गद्दों पर सोने वाले राजकुमार मेघ और कहां दीक्षा की पहली रात में पतली सी पथारी पर सोए मेघ मुनि? उस पर निरन्तर हो रहे पदाघात-वे विह्वल हो उठे। रात भर एक न एक संत निवृत्ति के लिए बाहर जाताआता रहा और अंधेरे के कारण निकास द्वार के पास सोए मेघ मुनि के शरीर से उनका पांव टकरा ही जाता। वे 'क्षमा' कहकर आगे बढ़ जाते, किन्तु मेघ मुनि तो मन मसोस कर रह जाते और मन ही मन कुढ़ते रहते। पूरी रात पदाघात सहते-सहते ही बीती-पल भर को भी पलक नहीं झपक सकी। वे घबरा गए कि ऐसा कष्टमय होता है यह साधु जीवन? उन्होंने सोच लिया कि वे यह सब कुछ सहन नहीं कर पाएंगे। . तनिक से पदाघातों ने मेघ मुनि के हृदय की पूत भावनाओं को दबा दिया-उनका चित्त भ्रांत होने लगा। असह्य कष्ट की व्याकुलता तथा महलों की सुखभरी याद के साथ वे भगवान् के समक्ष चले गए और आवेश में अपने कष्टानुभव का तीव्रता से वर्णन करने ही वाले थे कि भगवान् ही पहले बोल पड़े-क्यों मेघ मुनि ! रात्रि में लगे हल्के पदाघातों से ही घबरा कर दीक्षा त्याग के लिए आ गए हो? मेघ मुनि स्तब्ध-अब क्या कहें भगवान् को, उन्हें लज्जा-सी अनुभव होने लगी कि क्या उनमें वीरता का भाव नहीं रहा सो ऐसी विह्वलता आ गई? पश्चात्ताप का भाव जैसे उनके मन-मानस पर छाने लगा। तब वे व्यथित से खड़े ही रहे, कुछ भी बोल नहीं पाए। फिर भगवान् ही बोले-'मन को शान्त करो मेघ! कष्ट सहिष्णुता ही सच्ची आत्म-साधना होती है। जब तक शरीर का मोह मौजूद रहेगा, आत्मा की ओर दृष्टि अचल कैसे बनेगी? और तुमने तो ऐसा कष्ट समझते-बूझते इतनी शान्ति से सहा था कि तुम्हारा प्राणान्त ही हो गया और सन्तों के मामूली से पदाघातों पर भी इतना आक्रोश?' मेघ मुनि अपलक भगवान् के आभा मंडल को निहारते रहे। भगवान् ने उन्हें उनके ही पूर्व जन्म की कहानी सुनाई-मेघ कुमार का जीव पहले के जन्म में एक हाथी के रूप में था। अपनी विशालता और शक्ति के उपरान्त भी वह छोटे से छोटे प्राणी को भी कभी सताता नहीं था-बड़ा दयालु था। एक बार उस वन में दावाग्नि लगी-वह पूरे वन प्रदेश में फैल गई। वन के सभी छोटे-बड़े प्राणी अपने प्राण बचाने केलिए बाहर भागे। वह हाथी भी भागा। सभी प्राणी एक मैदान में जमा हुएकहीं तिल तक रखने की जगह नहीं बची। उस समय हाथी को पेट पर खाज होने लगी तो वह एक पैर उठा कर खाज करने लगा। इतने में एक खरगोश, जिसे कहीं भी जगह नहीं मिली थी, हाथी के पैर से खाली हुई जगह पर आकर जम गया। अब वह दयालु हाथी अपना उठाया हुआ पैर फिर से यथास्थान पर रखे तो कैसे? वह बड़े असमंजस में पड़ा, किन्तु अन्ततः निश्चय किया कि अपने सुख के लिए वह खरगोश के प्राण नहीं लेगा। वह पूरी रात तीन पैरों पर ही खड़ा रहा। प्रातः अग्नि के शान्त होने से संब प्राणी वहां से चले गए, किन्तु गहरी थकान से वह हाथी बेसुध होकर नीचे गिर पड़ा और शान्त मरण को प्राप्त हो गया। वही हाथी नये जन्म में राजकुमार मेघ के रूप में उत्पन्न हुआ।
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