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चरित्र को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने हेतु सद्भाव जरूरी
प्रमाण है। प्राचीन काल से ऐसे अनेक त्यौहार मनाये जाते रहे हैं जिनकी मूल आत्मा प्रकाश के साथ सम्बद्ध रही है। और तो और इस देश का नाम ही प्रकाश 'अर्थ से जुड़ा हुआ है। देश का नाम है भारत-इसके प्रथमाक्षर 'भा' का अर्थ होता है प्रकाश, जैसे प्रभा, आभा, विभा आदि और अन्तिम अंश' रत' का अर्थ है निमग्न, सो भारत का अर्थ हुआ प्रकाश में निमग्न (ऑब्सेस्ड विद लाईट )। तो इस देश का अन्तर्रहस्य इसके नाम में ही छिपा हुआ है, फिर भारत में प्रकाश के प्रति सबका आकर्षण क्यों न होगा? अति प्राचीन काल से प्रकाश से हम प्रभावित हैं। वेदों की अनेक ऋचाएं ऊषा और प्रभात के गान गाती हैं और ऋग्वेद में तो प्रकाश का अत्यन्त सारगर्भित वर्णन है। प्रकाश का सम्बन्ध प्रभात से और प्रभात का सम्बन्ध अन्धकारमय रात्रि से है क्योंकि रात्रि के अंधकार से उबरने और निद्रा से जागृत बनाने वाला प्रभात का प्रकाश ही तो होता है। अज्ञान, अविद्या या विकार का रूप अंधकारमय माना गया है और इन्हें तमोगुण कहा है। ज्ञान के पूर्ण अभाव को हमारे देश में अंधा-युग कहा जाता है। मन मानस में गहरे पैठे अंधविश्वासों तथा मर्यादित शिक्षा के अभाव से लेकर हमारे चारों ओर फैली अंध श्रद्धा एवं विकारों के प्रति विचारान्धता के रूप में इस अज्ञान या अविद्या को व्यक्त करने के कई रंग-रूप है । और कहा यह भी जाता है कि अंधे युग की आत्मघातक बुराईयों के कारक रूप अज्ञान के बन्धनों से जब स्वतंत्रता मिलेगी तभी अन्त होगा कलियुग का अर्थात् तब आविर्भाव होगा प्रकाश युग का ।
प्रकाश की प्रार्थना-अभ्यर्थना की भावना ही दीपावली के समारोह के मूल में हो तो कोई आश्चर्य नहीं, क्योंकि अमावस्या की पूर्णांधकारमय रात्रि में छोटे-छोटे असंख्य दीप जला कर उस प्रकाश को ही तो प्रकाशित करने का उपक्रम किया जाता है। छोटे-छोटे दीपों की टिमटिमाती किन्तु चमचमाती पंक्तियां जैसे मुखर सन्देश देती हो कि शक्ति के महादैत्य अंधकार को मिटाने में हम मिट्टी के छोटे-छोटे दिये भी पीछे नहीं रहेंगे, अंधे युग के आत्मघाती विकारों से मुक्त होकर रहेंगे और असहायों का पथ प्रदर्शन करते रहेंगे। कोई भी हजारों-लाखों में इन नन्हें दियों की पंक्तियां देखें तो आनन्द से झूम उठने के बिना वह रह नहीं सकेगा, क्योंकि ऐसी दृश्यावली से सौन्दर्य बोध तो होता ही है, परन्तु सुन्दर - असुन्दर का भेद भी स्पष्ट दिखाई देता है। जर्मन कवि गोथे का मृत्यु के समय का यह कथन बहुत लोकप्रिय हुआ कि 'प्रकाश... और प्रकाश' जो उनके अंतिम शब्द थे । हमारा प्रकाश पर्व दीपावली अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक ही नहीं है, अपितु हमारे सत्य की क्षीण ज्योति के साथ अंधकार से वीरतापूर्वक लड़ने का प्रमाण भी है।
भारत में प्रकाश का लौकिक से भी अधिक अलौकिक महत्त्व है। ज्ञान प्रकाश का प्रतीक कहा है और जब आत्मा सम्पूर्ण ज्ञानमय हो जाती है तो वह सिद्धशिला पर केवल ज्योतिस्वरूप रह जाती है। इधर जीव का लक्षण ज्ञान कहा है- ज्ञान नहीं तो चैतन्य नहीं अर्थात् प्रकाश जीव का लक्षण और प्रकाश ही आत्मा का प्रधान गुण । यह प्रकाश ही पुंज बनकर आत्मा को परमात्मा बना देता है। यही कारण है कि भारतीय जीवन साधना में ज्ञान रूप प्रकाश से प्रकाशित होने की प्रथम कामना की जाती है। भारत पहले भी ज्ञान गुरु होने के कारण 'विश्व गुरु' कहलाया और आज के हिंसा त्रस्त विश्व में अहिंसात्मक जीवनशैली के विकास को बल देकर भारत मानव जाति की एकरूपता एवं एकसूत्रता के आदर्श के माध्यम विश्व गुरु का दायित्व तथा सम्मान प्राप्त कर सकता है।
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