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धनबल, बाहुबल व सत्ता की ताकत का सदुपयोग चरित्रवान ही करेगा
किन्तु हमारा स्वभाव चला गया है नीचे से नीचे हमारी सड़कें बन गई हैं चौड़ी
और दृष्टिकोण संकड़े हो गये, कीमत नहीं कौड़ी हमारी अपव्ययता का पार नहीं पर अपना कहने को हमारे पास कोई आधार नहीं हम वस्तुएं खरीदते हैं अनाप शनाप परन्तु उनका सुरव उठा नहीं पाते खुद आप। हमारे पास बहुत बड़े-बड़े घर हैं लेकिन परिवार छोटे से छोटे जिसमें भी अपनापा बेघर है सुरव-सुविधाएं प्रचुर हैं पर समय का साथ नहीं बैठता सुर है जानकारी और ज्ञान बहुत बढ़ा लिया परन्तु निर्णय शक्ति घट रही है विशेषज्ञता हर क्षेत्र में हो गई किन्तु समस्याओं से धरती पट रही है।
औषधियां तो असंव्य हो गई हैं पर स्वास्थ्य और नीरोगता जैसे रखो गई है हमने अपनी सम्पतियां कर ली कई गुना परन्तु घट गये हैं अपने ही मूल्य
आदर्श रह गया है अनसुना . हम बातें बहुत बनाते चिकनी-चुपड़ी पर मुश्किल से करते हैं कभी प्यार बस, बढ बढकर नफरत के तीर चलाते भांत-भांत के मरवौटों का कर लिया प्रचार। हमने सीखा है अच्छे से रहना-सहना किन्तु आया नहीं जीवन का भाव अधिक वर्ष तो जीने लगे हैं । पर जीवन के वर्षों को। जीवन्त बनाने का नहीं ताव। हम ठेठ चन्द्रमां तक भी पहुंच गये
और लौट आये सकुशल पर नये पडौसी से मिलने को एक गली पार करने का नहीं लगाते बल
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