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________________ धर्म और विज्ञान का सामंजस्य निखारेगा मानव चरित्र का स्वरूप करता है और न ही सृष्टि रचना नाम के व्यवसाय को चलाने वाला सर्वशक्तिमान प्रबन्धक। सृष्टि ईश्वर की रचना नहीं है। यह तो अनादि है और विकासवाद की प्रक्रिया से निरन्तर गुजरती हुई आगे से आगे चल रही है। ईसाई धर्म के स्टीफन जे. पोप ने तो यहां तक कहा है कि विकासवान जीवविज्ञान को पहिचाना जा सकता है किन्तु इस प्रश्न का कोई सटीक उत्तर नहीं है कि इस संसार का ईश्वर से क्या सम्बन्ध है? इस विश्लेषण का एक आशय है। सष्टि को ईश्वर द्वारा रचित मानने वाले कटरपंथियों का विश्वास है कि ईश्वर ने ही ब्रह्माण्ड रचा, पृथ्वी बनाई और उस पर जीवन की सष्टि की। किन्त अब अनेक धर्मों के लोग इस विश्वास से दर सरक रहे हैं और मानने लगे हैं कि आज जीवन का जो रूप अस्तित्व में है वह दीर्घावधि से विकसित हुआ व तैयार हुआ है। सच यह है कि विज्ञान के इस विचार को धर्म अपने हठवाद में घसीटता है। धर्म यह भी नहीं बताता कि आखिर विज्ञान को वह क्या और कैसा मानता है? धर्म हकीकत में वैज्ञानिक सहमति की उपेक्षा करता है और पृष्ठभूमि की जानकारी को बिना कारण नकारता है। वह अपनी भ्रान्त धारणा को छोडना नहीं चाहता, जबकि विज्ञान प्रत्येक स्तर पर वस्तवादी बना रहता है. इस कारण सष्टि रचना का धर्म का विश्वास पहले ही झटके में गिर जाता है। विश्लेषण का आशय यही है कि अब धर्म और विज्ञान के सह- अस्तित्व में कोई बाधा नहीं है। आत्मा और प्रकृति दोनों के विज्ञान से मानव जीवन का घनिष्ठ सम्बन्ध : ... यदि धर्म और विज्ञान को अलग-अलग मानना और रखना है तो समझिए कि मानव चरित्र को खंड-खंड करना होगा। मानव चरित्र की एकात्मा तोड़ी नहीं जा सकती है और उसकी चारित्रिक क्षमता का निरन्तर विकास भी आवश्यक है। इसके लिए न तो वह धर्म को दरकिनार कर सकता है और न ही विज्ञान से भी मुंह मोड़ सकता है क्योंकि यदि धर्म आत्मा का विज्ञान है तो भौतिक विज्ञान भी प्रकृति का विज्ञान है। इसका तात्पर्य यह है कि धर्म अर्थात् अध्यात्म और विज्ञान दोनों ही मानव जीवन के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं। इस मानव जीवन के साथ दोनों विज्ञानों का घनिष्ठ सम्बन्ध है, किन्तु यह विडम्बना ही है कि दोनों विज्ञानों को भिन्न-भिन्न भूमिकाओं पर खड़ा कर रखा है और सामान्यजन को समझाया जाता है कि दोनों परस्पर विरोधी है। यह भी बताया जाता है कि दोनों का कार्य क्षेत्र अलग-अलग है जो एक दूसरे से मेल नहीं रखता तथा दोनों की पृष्ठभूमियां भी विपरीत है। ध्यात्म को कछ विशेष क्रियाकांडों और प्रचलित मान्यताओं के साथ जोड दिया है और विज्ञान को केवल भौतिक अनसंधान तथा विश्व के बाह्य विश्लेषण तक सीमित कर दिया है। दोनों ही क्षेत्रों में से जैसे एक वैचारिक प्रतिबद्धता खडी कर दी गई है. इतनी कि दोनों को परस्पर प्रतिद्वंद्वी बताया जाता है। तथाकथित धार्मिक लोग विज्ञान को पूरी तरह गलत व झूठा बताते हैं तो विज्ञान भी धार्मिक मान्यताओं को बेबुनियाद साबित कर रहा है। स्थिति यह है कि दोनों ओर के कट्टरवादी दोनों की सही उपयोगिता से मानव जीवन को वंचित करने में लगे हुए हैं। - अन्तरिक्ष यात्री चन्द्रमा की भूमि पर उतरे और जांच के लिए वहां की पत्थर मिट्टी भी ले आए। .. अब मंगल ग्रह की बारिकी से खोज तलाश हो रही है कि वहां जीवन विद्यमान है या नहीं। दिखाई दे रही बर्फ की परतों से अनुमान लगाया जा रहा है कि वहां जीवन का निर्वाह करने वाले तत्त्व तो 331
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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