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सुचरित्रम्
शिकारी एक बार के शिकार में ही संचित कर लेता है, क्योंकि वह अपनी विलासिता, रसलोलुपता, धार्मिक अंधविश्वास, मनोरंजन व शौकीनी में निरपराध पशुओं का घातक बनता है। शिकार करते समय कई बार खुद शिकारी की भी दुर्दशा हो जाती है कि याकि उसे मृत्यु मुख तक में चले जाना पड़ता है। आज की फैशनपरस्ती या कि लाभ लिप्सा के लिए भी पशुओं के शिकार की वृत्ति क्रूर बनी है। हाथी के दांत के लिए, बाघों की हड्डियों के लिए या हिरणों का कोमल चर्म के लिए तो शिकार होते ही हैं, परन्तु आज की श्रृंगार सामग्री के लिए चिड़िया, खरगोश, झिंगुर, भेड़ आदि मूक प्राणियों का खून भी बहाया जाता है। शिकार भयंकर पाप का कारण है तथा एक दुष्चरित्र व्यक्ति ही ऐसी क्रूरता में अपनी प्रसन्नता खोजता है। अन्य प्राणियों के प्राणों का अपहरण करके जो खुशी बटोरता है, उसे हकीकत में खुशी कभी नहीं मिलती है।
6.चोरी - जैसे कच्चा पारा खाने पर शरीर से फूट निकलता है, वैसे ही चोरी को व्यसन बनाकर जो दूसरों के धन का हरण करता है, वह चोरी का धन उसके पास कभी टिकता नहीं है। चोर अपने और अपने परिवार के जीवन को हमेशा जोखिमभरा बनाए रखता है। जो परिश्रम और नीति से दूर भागते हैं, वे ही चोरी के व्यसन को अपनाते हैं। चोरी क्या है? जो अदत्त है, वह चोरी है। चोरी का व्यसन धीरे-धीरे पनपता है। पहली बार कोई आंख चरा कर छोटी वस्त चराता है और घर पर लाकर अपनी मां को देता है। तब मुफ्त में वस्तु के मिलने से माँ खुश हो जाती है। चोरी तब आदत बन जाती है और एक दिन चोरी के भारी अपराध में जब उसे फांसी की सजा होती है तब उस माँ को पता चलता है कि चोरी की आदत बनाने का कितना घातक परिणाम होता है। चोरी की आदत बनने का मूल कारण लोभ होता है। शराब की तरह लोभ की लालसा बढ़ती जाती है और चोरी का व्यसन घातक बनता जाता है। जुआ के समान चोरी भी व्यक्ति को श्रमहीन, पुरुषार्थहीन तथा चरित्रहीन बनाती है। प्रश्न व्याकरण सूत्र में चौर्य कर्म के तीस नाम गिनाते हुए उसे अनार्य कर्म कहा है। मालिक की अनुपस्थिति में या उपस्थिति में आंख बचाकर वस्तु ले लेना भी चोरी ही है। बाकी सेंध लगाकर, जेब काटकर, ताला आदि तोड़कर दूसरों की धन सम्पत्ति का अपहरण करना तो चोरी का अपराध है ही। वैसे पड़ा हुआ, भूला हुआ, खोया हुआ कहीं पर गुप्त रूप से रखा हुआ धन आदि ले लेना भी चोरी में ही शामिल है। चोरी के छः प्रकार बताए गए हैं-1. छन्न चोरी-आंख बचाकर लेना, 2. नजर चोरी-देखते ही देखते चुरा लेना, 3. ठग चोरी-व्यक्ति के सामने ठग कर वस्तु ले लेना, 4. उद्घाटक चोरी-गांठ, ताला, तिजोरी आदि खेल कर चुराना, 5. बलात् चोरी-भय दिखाकर लूट लेना और 6. घातक चोरी-हत्या करके सबकुछ चुरा लेना। ___ इस जमाने में ऐसी चोरियाँ भी होती हैं, जिन पर सफेदपोशी का लेबल लगाने से बिन पकड़ी रहती हैं। व्यवसायी श्रम का शोषण करता है या कि व्यापारी वस्तुओं की मिलावट करके बेचता है, वह भी चोरी ही है। चोरी व्यसन के वशीभूत होकर भी की जाती है तो सफेदपोश चोरियाँ मुफ्त का धन लूटने की नीयत से भी होती हैं। दूसरों के द्रव्य पर आसक्ति तो चोरी का मूल कारण है ही, लेकिन कुछ ये कारण भी किसी को चोर बनाने के जिम्मेदार होते हैं-बेकारी, गरीबी, फिजूलखर्ची, कुस्वभाव या गलत संस्कार, अराजकता आदि।
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