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दुर्व्यसनों की बाढ़ बहा देती है चरित्र निर्माण की फलदायी फसल को
चारित्रिक पतन अर्थात् सर्वनाश!
एक राजा अपने दुर्व्यसनी राजकुमार से अत्यंत दुःखी
था। वह उसे शराब, तंबाकू, भांग आदि नशीले पदार्थों से मुक्त करने का भरसक प्रयत्न करता रहा, किन्तु जब उसे सफलता नहीं मिली तो उसने राजकुमार को एक अनुभवी वैद्य की देखरेख में सौंप दिया। वैद्य ने राजकुमार को कहा-मेरी औषधि का यही पथ्य है कि आप अपने मादक पदार्थों की मात्रा कल से ही दुगुनी कर सकते हैं। राजकुमार चौंका कि वैद्य जी यह क्या कह रहे हैं, किन्तु अन्ततः प्रसन्न होकर राजकुमार ने उनसे पूछा-आपके इस पथ्य से मुझे क्या लाभ होगा?
वैद्य जी बोले-राजकुमार आप को इससे चार लाभ होंगे-1. इससे चोर भाग जाएंगे, 2. आपका शरीर दुबला नहीं रहेगा, 3. हमेशा बैठने के लिए वाहन मिलेगा और 4. बुढ़ापा कभी नहीं आएगा। राजकुमार इतना भी मूर्ख नहीं था जो वह वैद्य जी के उस पथ्य पर किसी प्रकार की शंका नहीं करता। उसे संदेह तो हुआ, किन्तु वह वैद्यजी द्वारा बताए गए चारों लाभों के विषय में स्पष्ट रूप से समझ नहीं सका।
राजकुमार ने वैद्य जी से पूछा-आप द्वारा बताए गए
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