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संस्कृति, सभ्यता साहित्य और कला बुनियादी तत्व
उसको हर क्षण मानव निर्णय बनाता, मिटाता है!
4. हम जैसे पहले थे
वैसे ही अब भी हैं शासक बदले स्थितियां बिल्कुल वैसी हैं!
5. सुनते हैं तुम किसी अवतार में कछुए थे
अपनी इस वजोमय पीठ पर तुमने यह धरती टिकाई थी' लेकिन उपयोग क्या किया था सुकोमल मर्मस्थल का?
6. मैं रथ का टूटा पहिया हूँ
लेकिन मुझे फैंको मत इतिहासों की सामूहिक गति सहसा झूठी पड़ जाने पर क्या जाने सच्चाई टूटे हुए पहियों का आश्रय लें!
7. कह दो उनसे
जो रवरीदने आये हो तुम्हें हर भूरवा आदमी बिकाऊ नहीं होता!
8. दर्पणों में चल रहा हूँ
चौरवटों को छल रहा हूँ सामने लेकिन, मिली हर बार फिर वही दर्पण मढ़ी दिवार किन्तु अंकित भीत पर बस रंग में अनगिनत प्रतिबिम्ब हंसते व्यंग से।
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