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सुचरित्रम्
चरित्र निर्माण है सबका साध्य :
इसमें कोई विवाद नही कि संसार भर के धर्म, दर्शन, वाद या विचार मानव के चरित्र निर्माण को अनिवार्य मानते हैं तथा उसके लिये अपनी-अपनी आचरण पद्धतियों का भी निर्देश करते हैं। सबके बीच चरित्र के वांछित स्वरूप का अन्तर हो सकता है तो उसे गठित, शील और सम्पन्न बनाने के साधनों में भी भेद हो सकते हैं। किन्तु ये अन्तर या भेद ऐसे नहीं हैं जिनका समन्वय संभव न हो। अशुभ प्रवृत्तियों से दूर होने तथा शुभ प्रवृत्तियों को अपनाने जैसी चरित्र की सर्वसम्मत व्याख्या हो सकती है, भले ही शुभ क्या है और अशुभ क्या है-इसके विवरण में सामान्य अन्तर हो। यह बताने का कारण यह है कि आज चलाये जाने वाले चरित्र निर्माण के अभियान को न सबका समर्थन ही मिले बल्कि भरपूर सहयोग भी। .
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