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________________ सुचरित्रम् 4. विचार-आचार का सही चुनाव तो आदर्श चरित्र (स्वामी शिवानन्द): विचार एवं आचार के पुनरावर्तित चुनाव के आधार पर चरित्र का निर्माण होता है, इसलिये सही चुनाव करो तो तुम अपने चरित्र को सुदृढ़ एवं आदर्श बना सकोगे। (टी ओ आई सेक्रेड स्पेस)। 5. चरित्र निर्माण से सर्वत्र सफलता (हेलेन केलर): चरित्र का विकास आसानी से और चुपचाप नहीं होता। केवल लगातार की कष्ट सहिष्णुता से ही आत्मभाव सुदृढ़ होता है, महत्त्वाकांक्षाएं अनुप्राणित बनती हैं और सफलता झोली में गिरती है। (टी ओ आई-सेक्रेड स्पेस)। 6. बोलने से पहले करने वाला सच्चा चरित्रशील (कन्फ्यूसियस): शिष्य ने पूछा- कोई भी व्यक्ति अपने चरित्र को सुधार कैसे सकता है?' गुरु ने कहा-'यदि व्यक्ति पुराने ज्ञान को सहेजता रहे तथा नये ज्ञान की उपलब्धि करता रहे तो वह दूसरों का शिक्षक हो सकता है।' शिष्य ने फिर पूछा-'व्यक्ति महान् कैसे चरित्र से बनता है?' गुरु ने पुनः कहा-'जो बोलने के पहले आचरण करता है और तब अपने आचरण के अनुरूप बोलता है-यही चरित्र की महानता है' (टी ओ आई सेक्रेड स्पेस)। दोनों पहियों की असमानता में नहीं चलता है चरित्र का रथ: मनुष्य सदा से प्रार्थना करता आया है कि वह अंधकार से प्रकाश में पहुंचे (तमसो मा ज्योतिर्गमय) क्योंकि प्रकाशमय जीवन को चरित्र का उत्कर्ष माना गया है। जब किसी का मनमानस प्रकाश से प्रेरित एवं प्रकाशित होता है तब श्रेष्ठ विचारों का अभ्युदय होता है, विचार तब वाणी और कर्म में अभिव्यक्त होते हैं और इन सबसे श्रेष्ठ चरित्र का निर्माण होता है। इस निर्माण के लिये आवश्यक होती है समुचित शिक्षा तथा नियमित अभ्यास प्रणाली। यह प्रतिदिन चलनी चाहिए और यही अंधकार से प्रकाश में पहुंचने का सुरक्षित मार्ग है। यह हकीकत याद रखी जानी चाहिए कि एक अंधविश्वासी मन-मानस को कभी-भी प्रकाश की प्राप्ति नहीं हो सकती है, क्योंकि अंधविश्वास उसके मस्तिष्क की एक भी खिड़की को खुलने नहीं देता और उसके बिना अंधेरा मिट नहीं सकता। अंधकार से घिरा हुआ मन-मानस स्वस्थ कभी नहीं होता, रोगी बना रहता है। यह रोग उसके अंधविश्वासों के घनत्व को बढ़ाता रहता है तथा प्रकाश के प्रकटीकरण की संभावनाओं को समाप्त कर देता है। अतः प्रकाश पाने का सुनिश्चित मार्ग है चरित्र का निर्माण-ऐसे चरित्र का निर्माण जिसका सम्यग् ज्ञान और क्रिया के संयोग से सारी विकृतियों से मुक्ति पाने का दृढ़ संकल्प हो तथा वह आत्मविश्वास से सदा भरा पूरा रहे। आत्मविश्वास सफलता का सबसे बड़ा स्रोत होता है। दृढ़ आत्मविश्वास किसी को फांसी के फन्दे से भी वापिस लौटा सकता है। आत्मविश्वास और अंधविश्वास के अन्तर को पाट देता है चरित्र का निर्माण और एक आत्मविश्वासी चरित्र कहीं भी कभी-भी असफल नहीं होता है। ___ सच्चरित्रता, चरित्रशीलता, चरित्रनिष्ठा आदि को यदि एक रथ की उपमा दें तो हमें मानना होगा कि उसके दोनों पहिये होंगे-अहिंसक जीवनशैली तथा सत्यदर्शन की अभिलाषा। रथ को सही चाल से चलाने और तेज गति से दौड़ाने के लिये उसके दोनों पहियों का समान आकार-प्रकार होना नितान्त 208
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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