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सुचरित्रम्
शान्ति की स्थिति में ही बाह्य एवं आंतरिक सभी प्रकार के विकास कार्यों को सफलता के साथ सम्पन्न किया जा सकेगा। यह विकास सच्चे सुख एवं आनन्द का प्रवाह प्रवाहित करेगा, जिसका सुपरिणाम सर्वत्र सुख की अनुभूति के प्रसारण के रूप में प्रतिफलित हो सकेगा। ___अहिंसक जीवन शैली का एक मुख्य बिन्दु यह भी होना चाहिए कि सब विचारवान तथा विवेकवान बने परन्तु उनके विचार व विवेक में सत्य की प्रमुखता हो तथा सत्य को खोजने की अभिलाषा भी प्रमुख हो। यह तभी संभव है जब सब अपने-अपने स्तर पर स्वतंत्र रूप से सभी प्रश्नों एवं समस्याओं पर विचार करें किन्तु दूसरों के विचारों को भी तल्लीनतापूर्वक समझे और सब मिलकर विचार-समन्वयन का मार्ग अपनावें। इसे ही अनेकान्तवाद का मार्ग कहा जाता है, जिसमें विचार व्यक्तिकरण तथा प्रसारण की स्वतंत्रता (फ्रीडम ऑफ दी स्पीच एंड एक्सप्रेशन) होती है। अप्रतिबंधित विचार प्रकाशन से सबको अपनी समझ का सत्य बताने का तथा सबके विचारों में सत्य को खोज निकालने का अवसर मिलता है। अहिंसक जीवनशैली में अहिंसा के साथ अनेकान्तवाद से बड़ा अन्य सत्य नहीं तथा अपरिग्रहवाद से बढ़कर कोई आर्थिक व सामाजिक समाधान नहीं। ___ अहिंसा के एक ऐतिहासिक विरोधाभास का यहाँ उल्लेख करना समुचित होगा। 'अहिंसा परमोधर्म' की गूंज पूरे महाभारत में सुनाई देती है, लेकिन खेद कि पूरा महाभारत हिंसा से भरा हुआ रहा है। किन्तु यह सब तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाना चाहिए। यह अजीब लगेगा कि महाभारत की सारी हिंसा फिर भी न्याय के हेतु के लिये हुई कि पांडवों तथा कौरवों के बीच सत्ता का न्यायपूर्ण विभाजन हो। जहाँ न्याय के लिये हिंसा अनिवार्य ही हो जाए तो वह गृहस्थों के लिये अग्राह्य नहीं, जैसे कि गणाधिपति चेटक को न्याय के लिये सम्राट कुणिक के साथ भीषण युद्ध करना पड़ा। जब चारों ओर हिंसामय वातावरण हो तभी अहिंसा का पक्ष प्रबल होता है, झूठ व मिथ्या प्रचार जब सर चढ़े हो तभी सत्य की ललक जागती है और जब मानव हृदयों में भय और आतंक डराने लगते हैं तथा निर्भयता का प्रश्न उठता है। क्षमा तथा सहिष्णुता की नींव पर ही शान्ति का प्रासाद खड़ा किया जा सकता है। और इन सबको मिलाकर तैयार होती है अहिंसक जीवन शैली जिसका केन्द्र बिन्द होता है चरित्र। ___ चरित्र का निर्माण सिखाता है कि अणु-परमाणु शस्त्रों से भी अधिक घातक होते हैं अपने ही दिल में जलते हुए घृणा एवं प्रतिशोध के भाव । परमाणु शस्त्रों के विनाश का क्षेत्र तो सीमित होता है, किन्तु क्रोध, घृणा तथा बदले की भावना कितना महाविनाश कर सकती है उसकी कोई सीमा नहीं। इससे यह सबक मिलता है कि बाहर के घातक शस्त्रों का नियंत्रण ऐसे लोगों के हाथों में कतई नहीं रहना चाहिये, जिनका अपनी मनोवृत्तियों पर, मस्तिष्क पर और विचारणा पर कोई नियंत्रण न हो। यह नियंत्रण भी कशल प्रबंधन के समान चरित्रशील व्यक्तियों के हाथों में ही होना चाहिये।
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