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________________ सुचरित्रम् सफलता भी सुनिश्चित हो जाती है। राज्य जनता का और जनता राज्य की बनकर रहती है तब वहाँ अभाव-अभियोग नहीं रहते तथा असन्तोष की जड़ तक नहीं जमती। इस प्रकार के तंत्र को कोई भी नाम दें लेकिन वही जनता का असली तंत्र कहलाएगा। यह सब कुशल प्रबंधन का ही चमत्कार होता है। ऐसा कुशल प्रबंधन चिरस्थायी भी रहता है तभी तो असि, मसि, कृषि के सुप्रबंधन का स्वरूप आज भी जीवन्त गौरव है। मर्म की बात यही है कि संसार तथा समाज में कुशल प्रबंधन की नींव चरित्र की आधारशिला पर ही रखी जा सकती है और श्रेष्ठ चरित्रशीलता की झलक शासक एवं शासित दोनों में स्पष्ट होनी चाहिए। प्रबंधन है आज का प्रश्न, समाधान और उद्देश्य भी इस तथ्य में कोई विवाद नहीं कि वर्तमान परिस्थितियाँ कई कारणों से इतनी उलझी हई है कि उनका निराकरण विशेष आधार पर संभव हो सकता है। अव्यवस्था एवं अराजकता का दौर किसी न किसी रूप में चारों ओर फैला हुआ है। चरित्रशीलता का अभाव या कमी जनता में भी है तो शासक भ्रष्ट राजनीति के दलदल में गहरे डूबकर अधिकांशतः चरित्रहीन हो गए हैं। ऐसे में गंभीर प्रश्न है कि किस आधार पर संसार व समाज में अर्थपूर्ण परिवर्तन लाया जा सकता है? प्रबंधन या मेनेजमेंट आज के इस जटिल प्रश्न का उत्तर माना जा रहा है। अभी खासतौर पर व्यापार-वाणिज्य क्षेत्र में तो प्रबंधन का चलन फैल ही रहा है, किन्तु उसे अपनाने की हर क्षेत्र में होड़ सी भी लगी है। छात्र भी एम.बी.ए. की डिग्री हासिल करने में अपने कैरियर के उन्नत बनने की आशा रखते हैं। प्रबंधन तकनीक का विस्तार विकास कार्यों में भी होने लगा है। यहाँ तक कि सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल प्रबंधन ने भी जोर पकड़ा है। संक्षेप में सोचें कि क्या होता है प्रबंधन? जल प्रबंधन का ही उदाहरण लें। जिन अभावग्रस्त क्षेत्रों में वर्ष के अधिकांश भाग में सिंचाई की बात तो दूर, पेयजल तक की कमी रहती है, वहाँ के लोग क्या करें? जैसा कि आज होता है इन अभावग्रस्त क्षेत्रों के लोग होहल्ला मचाते हैं, जनान्दोलन चलाते हैं और सरकार भी चालू उपाय कर देती हैं कि पानी की रेलगाड़ियाँ इधर-उधर भेज दी जाती है। चीखते-चिल्लाते वक्त निकल जाता है और हर साल यही सब दोहराया जाता रहा है। लोकतंत्र में सरकारों का रंगढंग ऐसा रहता है कि समस्याओं का उतना ही अस्थाई हल निकालो जिससे उनकी वोट की राजनीति चलती रहे । समस्या का स्थाई रूप से समाधान किया जाए और आम लोगों को खुशहाल बनाया-यह कहा तो जाता है, किया नहीं जाता। दोनों ओर चरित्र की कमी होने से परिस्थितियों की जटिलता मिटती नहीं, बल्कि ज्यादा गहराती रहती है। इस समस्या या सच कहें तो प्रत्येक समस्या का सुन्दर समाधान होता है स्वावलम्बन । जो लोग राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी भूभाग से परिचित हैं जहाँ अधिकतर अकाल की काली छाया घिरी रहती है, वे जानते हैं कि वहाँ दीर्घकाल से स्वैच्छिक जल प्रबंधन चला आ रहा था। प्रत्येक घर में टांकें (जल संग्रह घर) बनाए जाते थे जिनमें छत पर गिरा बरसात का सारा पानी संग्रह कर लिया जाता था। उसका उपयोग वर्ष भर सुविधापूर्वक होता रहता था। उस जल प्रबंधन के सहारे परिवार ही नहीं गाँव के गाँव स्वावलम्बी बने रहते थे। नई व्यवस्था ने प्राचीन स्वावलम्बन को तोड़ दिया-यह दूसरी बात है। तो प्रबंधन का अर्थ 164
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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